________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
तत्त्वनिर्णयप्रासादसद्धासंवेगपरं सूरी नाऊण तं तओ भवं ॥ चिइवंदणाइकरणे इअ वयणं भणइ निउणमई ॥३४॥ भो भो देवाणुपिया संपाविअ निययजम्मसाफल्लं ॥ तुमए अजप्पभिई तिकालं जावजीवाए ॥ ३५॥ वंदेअवाइं चेइआई एगग्गसुथिरचित्तेणं ॥ खणभंगुराओ मणुअत्तणाओ इणमेव सारंति ॥ ३६॥ तथ्थ तुमे पुण्हे पाणंपि न चेव ताव पाय ॥ नो जाव चेइआइं साहविअ वंदिआ विहिणा ॥ ३७॥ मज्झण्हे पुणरवि वंदिऊण निअमेण कप्पए भुत्तुं ॥ अवरण्हे पुणरवि वंदिऊण निअमेण सुअणंति ॥ ३८॥ एवमभिग्गहबंधं काउं तो वढमाणविजाए ॥ अभिमंतिऊण गिण्हइ सत्त गुरु गंधमुद्दीओ ॥ ३९॥ तस्सुत्तमंगदेसे निथ्थारगपारगो हविज तुमं ॥ उच्चारेमाणोविअ निक्खिवइ गुरु सपणिहाणं॥४०॥ एआए विजाए पभावजोगेण एस किर भवो ॥ अहिगयकजाण लहुं निथ्थारगपारगो होउ ॥४१॥ अह चउविहोवि संघो निथ्थारगपारगो हविज तुमं ॥ धन्नो सलक्खणो जपिरोत्ति निक्खिवइ से गंधे ॥४२॥ तत्तो जिणपडिमाए पुआदेसाओ सुरभिगंधर्टी ॥ अमिलाणं सिअदामं गिहिअ गुरुणा सहथ्थेणं ॥४३॥ तस्सोभयखंधेसुं आरोवंतेण सुद्धचित्तेणं ॥ निस्संदेहं गुरुणा वत्त एरिसं वयणं ॥४४॥ भो भो सुलद्धनिअजम्म निचिअअइगरुअपुन्नपप्भार ॥ नारयतिरिअगईओ तुज्झावस्सं निरुद्धाओ॥४५॥
For Private And Personal