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तत्त्वनिर्णयप्रासादचत्तारि चेव ससुरासुरस्स लोगस्स उत्तमा हुति॥ अरिहंत सिद्ध साहू धम्मो जिणदेसियमुयारो॥९॥ चत्तारिवि अरिहंते सिद्धे साहू तहेव धम्मं च ॥ संसारघोररक्खसभएण सरणं पवजामि ॥ १० ॥ अह अरहओ भगवओ महइ महा बदमाणसामिस्स ॥ पणयसुरेसरसेहरवियलियकुसुमुच्चयकमस्स॥११॥ जस्स वरधम्मचकं दिणयरबिंबव्व भासुरच्छायं ॥ तेएण पज्जलंतं गच्छइ पुरओ जिणंदस्स ॥१२॥ आयासं पायालं सयलं महिमंडलं पयासंतं ॥ मिच्छत्तमोहतिमिरं हरेइ तिण्हपि लोयाणं ॥ १३॥ सयलंमिवि जियलोए चिंतियमित्तो करेइ सत्ताणं ॥ रक्खं रक्खसडाइणिपिसायगहभूअजक्खाणं ॥ १४॥ लहइ विवाए वाए ववहारे भावओ सरंतो अ॥ जूए रणे अ रायंगणे अ विजयं विसुद्धप्पा ॥ १५॥ पच्चूसपओसेसुं सययं भव्यो जणो सुहन्झायो । एअं झाएमाणो मुक्खं पइ साहगो होइ ॥ १६ ॥ वेआलरुद्ददाणवनारदकोहंडिरेवईणं च ॥ सव्वेसिं सत्ताणं पुरिसो अपराजिओ होइ ॥ १७॥ विज्जुव्व पज्जलंती सव्वेसुवि अक्खरेसु मत्ताओ॥ पंचनमुक्कारपए इकिक्के उवरिमा जाव ॥ १८॥ ससिधवलसलिलनिम्मलआयारसहं च वन्नियं बिंदुं ॥ जोयणसयप्पमाणं जालासयसहस्सदिप्पंतं ॥ १९॥ सोलससु अक्खरेसु इकिकं अक्खरं जगुज्जोअं॥ भवसयसहस्समहणों जमि हिओ पंच नवकारो ॥२०॥
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