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सप्तविंशस्तम्भः
४१७
यथा ॥ “ ये ये जिनवचनरता वैयावृत्त्योद्यताश्च ये नित्यम् ॥ ते सर्वे शांतिकरा भवंतु सर्वाणुयक्षाद्याः ॥ १॥"
पीछे.॥ नमो अरिहताणं' कहके बैठके “ नमुथ्थुणं० जावंतिचेइयाई." और “अईणादिस्तोत्र" पढे. यथा ॥
आरिहाण नमो पूअं अरहंताणं रहस्स रहिआणं ॥ पयओ परमिट्ठीणं अरुहंताणं धुअरयाणं ॥१॥ निवअट्ठकम्भिधणाण वरनाणदंसणधराणं ॥ मुत्ताण नमो सिद्धाणं परमपरमिट्ठिभूयाणं ॥२॥ आयारधराण नमो पंचविहायारसुट्टियाणं च ॥ नाणीणायरियाणं आयारुवएसयाण सया ॥३॥ बारसविहं अपूव्वं दिताण सुअं नमो सुअहराणं ॥ सययमुवज्झायाणं सज्झायज्झाणजुत्ताणं ॥४॥ सव्वेसिं साहूणं नमो तिगुत्ताण सव्वलोएवि ॥ तवनियमनाणदंसणजुत्ताणं बंभयारीणं ॥५॥ एसो परमिट्ठीणं पंचन्हवि भावओ नमुक्कारो॥ सव्वस्स कीरमाणो पावस्स पणासणो होइ॥६॥ भुवणेवि मंगलाणं मणुयासुरअमरखयरमहियाणं ॥ सव्वेसिमिमो पढमो होइ महामंगलं पढमं ॥७॥ चत्तारि मंगलं मे हंतु अरहा तहेव सिद्धा य ॥ साहू य सव्वकालं धम्मो य तिलोयमंगल्लो॥८॥
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