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सप्तविंशस्तम्भः ।
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जो गुणइ हु इकमणो भविओ भावेण पंच नवकारं ॥ सो गच्छ सिवलोयं उज्जोअंतो दसदिसाओ ॥ २१ ॥ तवनियम संजमरहो पंचनमोक्कारसारहिनिउत्तो ॥ नाणतुरंगमजुत्तो नेइ फुडं परमनिव्वाणं ॥ २२ ॥ सुद्धा सुद्धमणा पंचसु समिईसु संजय तिगुत्तो ॥ जे तम्मि रहे लग्गा सिग्धं गच्छति सिवलोअं ॥ २३ ॥ थंभेइ जलं जलणं चिंतियमित्तोवि पंच नवकारो ॥ अरिमारि चोरराउलघोरुवसग्गं पणासेइ || २४ ॥ अवय असयं असहस्सं च अडकोडीओ ॥ रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपण मिआ सिद्धा ॥ २५ ॥ नमो अरहंताणं तिलोयपुज्जो अ संधुओ भयवं ॥ अमरनररायमहिओ अणाइनिहणो सिवं दिसउ ॥ २६ ॥ निविअ अडकम्मो सिवसुहभूओ निरंजणो सिद्धो ॥ अमरनररायमहिओ अणाइनिहणो सिवं दिसउ ॥ २७ ॥ सव्वे पओसमच्छरआहिअहिअया पणासमुवयंति ॥ दुगुणीकयधणुस सोउपि महाधणुसहस्सं ॥ २८ ॥ इय तिहुअणप्पमाणं सोलसपत्तं जलंतदित्तसरं ॥ अहार अवलयं पंचनमुक्कारचकमिणं ॥ २९ ॥ सयलुज्जोइअभुवणं निद्दाविअसेससत्तुसंघायं ॥ नासिअमिच्छत्ततमं विलियमोहं गयतमोहं ॥ ३० ॥ एयरस य मज्झथ्थो सम्मदिट्ठीवि सुद्धचारिती ॥ नाणी पवयणभत्तो गुरुजणसुस्सूसणापरमो ॥ ३१ ॥ जो पंच नमुक्कारं परमो पुरिसो पराइ भत्ती || परियत्तेइ पइदिणं पयओ सुद्धप्पओगप्पा ॥ ३२ ॥
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