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सप्तमस्तम्भः ।
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अथ ईश्वर जैसें जगत्कों सृजता है, सो प्रश्नोत्तरोंकरके कहते हैं । लोकमें घटादि करनेकी इच्छावाला कुंभकार, घरादिस्थानमें रहकरके मृत्तिकाआदि आरंभक द्रव्यरूपकरके, और चक्रादि उपकरणोंकरके घटादिक निष्पादन करता है । ईश्वरकों सो आक्षेप करते हैं । (स्विदिति) वितर्क है, द्यावाभूमी सृजता हुआ विश्वकर्माका (अधिष्ठानं किमासीत् ) आधार क्या था ? क्योंकि विना अधिष्ठान के कुछ भी नही कर सक्ता है (स्विदिति वितर्के ) तर्क करते हैं, (आरंभणं कतमत् आसीत् ) आरंभण क्या था ? उपादान कारण क्या था ? जैसें मृत्तिका घटोंका (कथा) क्रिया च कम्प्रकारा ( आसीत् ) क्रिया किसप्रकार थी ? निमित्त कारण क्या था ? दंडचत्रसलिलसूत्रादिकरके घटादि करते हैं, तिनसमान क्या था ? (यतः ) जिससे विश्वकर्मा जिस कालमें पृथिवी और स्वर्गकों (जनयन् ) रचता हुआ (महिना) स्वसामर्थ्यकर के सृष्टि द्यावापृथिवीकों (और्णोत् ) आच्छादित करता भया, कैसा विश्वकर्मा ? ( विश्वचक्षाः ) सर्वद्रष्टा ॥ १८ ॥
उत्तर कहते हैं ॥ ( एक: ) अकेला असहायी ( देव:) विश्वकर्मा ( द्यावाभूमी जनयन् ) स्वर्ग और भूमिकों रचता हुआ ( बाहुभ्यां ) बाहुस्थानीय धर्माधर्मकरके ( संधमति ) संयोगकों प्राप्त होता है, (पतत्रैः ) पतनशीलवाले अनित्यं पंचभूतोंकरके प्राप्त होता है, धर्माधर्मनिमित्त करके पंचभूतरूप उपादानोंकरके साधनांतरके विनाही सर्व सृजन करता है, अथवा धर्माधर्मकरके च पुनः भूतोंकरके (संधमति) सम्यक् प्रकार करके प्राप्त करता है जीवोंकों, कैसा है ? ( विश्वतश्चक्षुः ) सर्व ओरसें चक्षु हैं जिसके ( विश्वतोमुखः ) सर्व ओरसें मुख हैं जिसके ( विश्वतोबाहुः ) सर्व ओरसें बाहां हैं जिसके ( विश्वतः पात्) सर्व ओर सें पग हैं जिसके, सो परमेश्वरकों सर्व प्राण्यात्मक होनेसें जिस जिस प्राणी जे जे चक्षु आदि हैं, ते सर्व तिस उपाधिवाले परमेश्वरकेही हैं; इस वास्ते सर्व जगे चक्षुआदि प्राप्त होते हैं इति ॥ १९ ॥
पुनः फेर प्रश्न है ( विदिति ) वितर्क में है ( वनं किम् आस ) सो वन कौनसा था ? ( उ ) अपि च (सः वृक्षः कः ) और सो वृक्ष कौनसा
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