________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
२०४
तत्त्वनिर्णयप्रासादतथा
यइमा विश्वाभुवनानिजुह्वदृष्टिोतान्यसीदत्पितानः। सआशिषाद्रविणमिच्छमानःप्रथमच्छदवराँ २॥ ऽआविवेश ॥१७॥
किस्विदासीदधिष्ठानमारम्भणंकतमत्स्वित्कथासीत्। यतोभूमिंजनयन्विश्वकर्माविद्यामौर्णोन्महिनाविश्वच॑क्षाः ॥१८॥
विश्वतश्चक्षुरुतविश्वतोमुखोविश्वतोबाहुरुतविश्वतस्पात् । संबाहुण्यांधमतिसंपतत्रैवाभूमीजनयन्देवएकः ॥ १९॥
कि स्विद्वनंकउसक्षआसयतोद्यावापृथिवीनिष्टतक्षुः । मनीषिणोमनसापृच्छतेदुतद्यद्ध्यतिष्ठद्रुवनानिधारयन्॥२०॥
यजुर्वेद१७अध्याये. भावार्थः--प्रजाकों संहार सृजन करते विश्वकर्माकों देखता हुआ ऋषि कहता है । (यः) जो विश्वकर्मा (इमा) इमानि (विश्वा) वि. श्वानि-यह जो सर्व (भुवनानि ) भूतजातोंकों (जुह्वत् ) संहार करता हुआ (न्यसीदत्) आपही बैठता हुआ, कैसा ? (ऋषिः) अतींद्रियद्रष्टा सर्वज्ञ (होता) संहाररूप होमका कर्ता (नः) अस्माकम्-हम प्राणियोंका (पिता) जनक है । प्रलयकालमें सर्व लोकोंका संहार करके जो परमेश्वर आप एकेलाही रह गया था, तथा चोपनिषदः। “ आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीन्नान्यत्किंचन मिषत् । सदेव सोम्येदमग्रआसीदेकमेवाद्वितीयमित्याद्याः॥” (सः) तैसा पूर्वोक्त स्वरूपवाला सो परमेश्वर (आशिषा) अभिलाषकरके "बहुस्यां प्रजायेयेत्येवंरूपेण” ऐसे रूपकरके पुनः फेर रचनेकी इच्छारूपकरके (द्रविणमिच्छमानः) जगतरूपधनकी अपेक्षा करता हुआ (अवरान्) अभिव्यक्त उपाधीयोंमें (आविवेश ) जीवरूपकरके प्रवेश करता भया. कैसा ? (प्रथमच्छत् ) प्रथम एक अद्वितीयस्वरूपकों जो छादन करे सो 'प्रथमच्छत् ' उत्कृष्ट रूपकों आच्छादन करता हुआ प्रवेश करता भया, (इच्छमानः) सो वांछा करता भया, 'बहु स्यां' बहुतरूप हो जाऊं इत्यादि श्रुतियोंसे जान लेना ॥ १७॥
For Private And Personal