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वर्णवीजकोषा शब्द अर्थ शब्द
अर्थ साह दवज्ञ:-ऋा
द्विरूपा-आ दुर्गाबीजम्-दुः।दुम् दोग्धी-ऋाहूं
द्विपा-ऋ दुर्द्धरा-ऋ दोला-फ्रें
द्विपेज्य:-क्रों दुर्भगा-ल
दोषाकरः-ए।छास:द्रा द्विभुजा-ऊ दुलो-म दौमाता-ऋ
द्विमात्रा-ऋ दुश्च्यवन:-इल धतिः-छात्राक्षाक्ली द्विरण्ड:-नापाम दुःखप्रवर्तकः-(अं) धभङ्गी-ङ
द्विरण्डेश:-नाबाभ दुःखसञ्चय:-:(अः) द्यमणि:-म
द्विरद:-क्रों दुखापहारी-(अं) 'द्यो:-आखाहाहँ
द्विरदन:दृढः-ल द्यो-आखाहाह
द्विरेफ:-ण दृश्यकेतु:द्रावणबाण:-क्लीं
द्विशीर्षक:-छ देव:-चाटाक्ष
द्राविणो-उगाझामाणाद द्विस्व:-छ देवकीनन्दन.-आउाक्ली । द्रुघणः-काकँ
द्वीपवान्-रू देवकीसूनुः-आउक्ली द्रुमः-(अं)ोल
द्वैमातुरः-ग देवतरु:-ऊ द्रमारि।-क्री
॥ ध ॥ देवताधिप:-हाल हिण:-काक
धनम्-काघार देवदेवः-एगासाह दलूद्लू-झ
धनञ्जयः-रारं देवमाता-ऋऋ द्वयम्-:(अ.)
धनेद:-ढ देवराज:-इनाल
धनदा-ग देवो-ऋाफाहाह्रीं द्वादशात्मा-म
घनार्थ-ध देवीकोट:-च
द्वारकेश:-आउक्लिी धनी-घ देवीपीठाधिप:-छ द्विज:-ओग
धनु:-टा देवीप्रणवः-ह्रीं
द्विजपति:-ऐ। सादा धनुर्धरः-पाल देवीबोजम्-स
द्विजराज:-
ऐसादों धनेश्वरी-ल देश:द्विजा-ट
धन्या-लाऐ देहिनी-लाल द्विजिह्वा-ड
धरणा-ध दैत्य गुरु:-लात्रों द्विस्तम्भन:-ल
धरणिः(णी)-लाल दैत्यमान्य:-लाबों द्वितारो-हीं।श्री धरणीकोलक:-द दैत्यमात्यः-त्रों द्विनेत्री-ण
धरणीधर:-आउादाक्लों दत्यारि:-आउाक्लीं द्विप:-क्रोप्रा
धरणोध्र-च
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