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कालिकाचार्यकथा |
असहंतो गुरुमहिमं, हीलई उवरोहिओ तहिं धम्मं । सूरिणा सुविहिविडिओ, निरुत्तको उजुत्तीहिं ॥ ९१ ॥ तो सो मच्छरियमणो, कवडेण गुरुण कुणइ बहुभति । रायाणं पर जंप, धम्ममिसेणं धुवं पापं ॥ ९२ ॥ जेण इमे जम्मि पहे, भर्मति नयंरे महासुणी तम्मि । गच्छंताणं गुरुपयअइकमो होइ जं निचं ॥ ९३ ॥ कमिन्दि गुरुसमुहं, भन्नइ जं जाह इय निवेणुत्ते । भइ इमो तह काहं, जहा गमिस्संति सयमेव ॥ ९४ ॥ निम्मविया सयलपुरे, अणेसणा तेण भत्तपाणस्स । तो संकिलेसठाणं, नाउं नाणेण तं गुरुणा ॥ ९५ ॥
( ३ ) सिरिवीरनाहचरियं, चिंतिंता वरिसयालमझे वि । पुजणम्मि पुरे, संपत्ता नियगणसमेया ॥ ९६ ॥ तत्थ सिरिसालवाहणरन्ना कीरंतपूयसकारा । भवियजष्णकुमुय चंदा, चिद्वंती कालयमुनिंदा ॥९७॥ पज्जो समणासमए, विन्नत्ता रायणा गुरू एवं | भवइजुण्हपंचमिदिणम्मि जायइ इहिंदमहो ॥९८॥ अम्हेहिं हि मयवं (इंदो ? ), [ अणु ] गंतव्वतो न होइ जिणपूया । छट्ठी पज्जुसवणं, करेह ता करिय सुपसायं ॥ ९९ ॥
मण गुरू जड़ उग्गर, सुरो अवराइ चलs अमरगिरी । तह विन पंचमिरयणि, पज्जोसवणा अइकमइ ॥ १०० ॥ ता कुण चत्थीए, निववृत्तं मत्रियं इमं गुरुणा । जेणागमे वि भणियं, आरेण वि पज्जुसवियव्वं ॥ १०१ ॥ तो कुणइ चउत्थीए, राया सद्धिं गुरुहिं संषेण । चेयपरिवाडी - धम्म सवण - आवस्सयाईणं (णि) ॥ १०२ ॥ एवं सिरिसालाहणउवरोहाओ कयं चउत्थीए । पज्जू सवर्ण काळयमुणीसरेहिं [ बहुगुणेहिं ] ॥ १०३ ॥ संवेण मन्त्रियं तं तेणज्ज वि कीरए तहा चेव । चउमासगाणि तत्तो, किज्जंति चउदसितिहीए ॥ १०४ ॥
( ४ )
कइया वि तस्स पहुणो, सीसा दुब्विणयतप्परा जाया । गुरूपडिणीया सच्छंदचारिणो मंदभग्गा ते ॥ १०५ ॥
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