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अज्ञात सूरिविरचिता
अट्टालयहियाए, एयाए रासभी जो सदं । सुणिही मरिही स फुडं, इय पहुणा पभणिया ते उ + ॥ ७५ ॥ विज्जासत्तीए पsिहयाए साहीहिं भंजिडं सालं । बंधिचा सूरिपूरो, खित्तो सो गद्दभिनिवो ॥७६॥ मुत्त-पुरीसे मोतुं, पलाईजं सा गया महाविज्जा । तो भणियं सूरीहिं, एहमित्तं बलमिमस्स ||७७ | इय तं पि विणिग्गहियं (उं), तो वीसत्था करेह नियरज्जं । अह तेहिं पुरी भग्गा, राया वि हु बंधि गहिओ ||७८ || तो भणिओ सूरीहिं रे पाव ! इढेण तीए समणीए । जं चुकोऽसि अलज्जिर !, इह - परभवदुक्खनिरविक्खो ॥७९॥ तित्थयराण वि पुज्जो, अणज्ज ! आसाइओ य जं संघो । तस्सा राहतरुणो, पत्तो कुसुमोग्गमो तुमए ॥८०॥ जं पुण अनंतभवसायरम्मि भमिहिसि अणेयदुहभीमे ।
जिस फलं पि हु, ता अज्ज वि गिण्ह जिणदिक्खं ॥ ८१ ॥ पावईं किं पि नित्थरसि, जेण इच्चाई जान करुणाए । पers सूरी दुमिज्जर निवो ताव अहिययरं ॥ ८२ ॥ तो सूरी पभणइ तयं, समुवज्जियगरुयदु सहमवदुक्खा । तुम्हारिसा वि को मोक्खभायणं सकइ विहेडं ? ॥८३॥ जीवदयामूलो चिय, धम्मो अम्हाण तेण न हओ सि । surt बहुं निव्भत्थिकण मोताविओ एसो || ८४॥ सगपत्थिवेहिं विसयाओ ताडिओ भमइ तो इमं दीणो । संसारं च अनंतं, भसिही तकम्मदोसेण || ८५ ॥ अह जस्स साहिणो पढममेव सूरी ठिओ पुरवरम्मि । सो उज्जेणीराया, जाओ सेसा उ सामंता ॥ ८६ ॥ आलोय पडिकंता, भगिनी सूरिहिं संजये ठविया । आलोयणया सुद्धा, कणयसिलाय व अग्गीओ ॥८७॥ सूरी विहु निययगणं, पुणो वि समलंकरेइ सुद्धा | उज्जेणिपुरी ठिओ, अचिज्जंतो नरिदेहि ||८८ || इय पयडियनियसत्ती, भइणीकज्जम्मि अच्छरियचरिओ । तित्थभावगरे, संपत्तो का यदि ॥ ८९ ॥
( २ )
अह अन्नया य पत्ता, भरुयच्छे सूरिणो ठिया तत्थ । बळमित्त भाणुमित्ता, रायाणो जत्थ भइणिसुया ॥९०॥
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+ अतः परं कियानपि पाठः पतितः ॥
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