________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीधर्मघोषसरिविरचिता
नियसीससीससागरचंदसमीवे सुवनभूमीए । पत्तो तत्तो सूरी, दूरीकयमोहतिमिरोहो ॥७५॥ 'अब्भुद्विज अपुव्वं दटुं' इय वयणओ अ थेरौं ति । तेणष्णभु(मुट्ठिय पुट्ठो, कुओ ति अज्जो ! भणइ दूरा ॥७॥ वक्खाणते पुट्ठो, दिहा मह गुरु ति भणइ दढं । तह वक्रवाणं मे केरिसं ति भणिए भणइ लडें ॥७७॥ अतिहि ति ठविअ सो, पुच्छ कि पि विसमं ति सायरेणुत्तो । जंपइ अणिच्चयं मे, साहसु तो सायरो मणइ ॥७८॥ पच्चूससिद्धसायं, विणस्सिरबाइ विरसनिष्फन्ने । का सारया सरीरे, कुण(करे ?)ह धम्मं सया सारं ॥७९॥ गुरुराह नत्थि धम्मो, पमाणऽविसओ चि खरविसाणं व । पञ्चक्खाइ अगिज्झो, जं सो तो तग्गहेणाळं ॥८॥ अइबुड्ढो को वि५ नरो, पियामहसमु ति सायरो धणिय । विम्हयरसायरो गवसायरो सायरं भणइ ॥८॥ जइ नत्थि कई धम्मो, जइ धम्मो कहव नत्यि अह धम्मो । अन्भुवगमा परेसि, नणु सझं अम्ह सिद्धते ॥४२॥ पच्चक्खा तह धम्मा, धम्मा वि मुहासुहाइफलदाणा । ता मुत्तुमहम्मं आयरेण धम्म चिय करेह ॥८३॥ इय ते तत्तवियारेण, निति खणमिव दिणे सुणेह इओ । ते वि गुरुमठ्ठ पए, तरयं पुच्छंति सुन्नमणा ॥८४॥ स भणइ भे किं न सुआ, सुकुमालिय-कूलवालयाण गई ।
आयवणाइ पराण वि, अमुहा गुरुआणरहियाणं ॥८५॥ अवि य
सिआ हु सीसेण गिरि पि भिंदे, सिआ हु सीहो कुविओ न भक्खे । सिआ न भिदिज्ज व सत्तिअग्गं, नयावि मुक्खो गुरुहीलणाए ॥८६॥ सनिबंधे दीणमुहे, भणइ ति गुरू गया पसीसते ।। तो चलिया ते भणिरा, मग्गे कालयगुरू जंति ॥८७|| अज्जो इंति गुरुगुरू, सागरपुठ्ठ ति कहइ मे वि सुअं। अह ते पत्ता लहु सागरुहिया विति कत्थ गुरू ? ॥८॥ जा मणइ सो ससंको, न विणा अज्ज इहागओ को वि । वाव बहि महीपत्ता, नमिआ सहरिसमिमेहिं गुरू ॥८९॥ तह सागरो वि खमह त्ति, जंपिदो नमइ' पुण पुणो सुगुरुं ।
तो गुरुणा अणुसिहा, सव्वे वदंति ते सम्मं ॥१०॥ २४ थेरो ति P। २५ वि इमो पि.P। २६ पमो ति PM
For Private And Personal Use Only