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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिकाचार्यकथा। तह तह नीअत्तेणं, उवहासं सो करेइ संघस्स । जं दुद्धपाइओवि हु, विसमविसं मुंचई भुअगो ॥१८॥ दुडधोओ वि काओ, जह कण्हत्तं न मुंचई कह वि । तह नीओ नीअतं, न मुअइ उचत्तपत्तो वि ॥१९॥ धइं सींचिउ लींबडउ, घाणउं किउँ गुलेण । तोइ न छंडइ कहूयपण, जातिहिं तणई गुणेण ॥२०॥ अवमैनिय नियसंघ, नाउ पइन्नं इमं कुणइ सूरी । उम्मूले जइ न इमं, पडिणीयगई तओ जामि ॥२१॥ यत: जो पवयणपडिणीए, संते विरियम्मि नो निवारिज्जा । सो पारंचियपत्तो, परिभमइ अणंतसंसारं ॥२२॥ देव-गुरु-संघकज्जे, चुनिज्जा चकवट्टिसि पि । कुविओ मुणी महप्पा, पुलाइलद्धीइ संपन्नो ॥२३॥ जइ कहवि इमो बुज्झइ, तोऽहमुवाय रएमि निरवायं । इअ चिंतिम करुणाए, सत्तो वि गुरू करइ एवं ॥२४॥ जइ निवइ गहिल्लो, कहं च रोरो तओ कि कोआ ? । इच्चाइ जपिरो" परिभमेइ गहिल न्च हा सूरी ॥२५॥ अह मंतीहि वि भणिओ, निव पंचमलोगपाल ! सुण सम्मं । पगईइ रंजणेणं, राया सेसो अ नामेणं ॥२६॥ पालिज्जइ साहुजणो, दसैणिवग्गो विसेसओ जेण । सो दूमिओ अ नरवर !, दुइदाहं दारुणं देइ ॥२७॥ यतः देवतापतिमामझे, साधूनां च विनाशने । देशभङ्गं विजानीयाद्, दुर्भिक्षडमरौशिवैः ॥२८॥ मैंयलिज्जइ विमलकुलं, लजिजइ जेण लोअमज्झम्मि । कंठगयजीविएहि वि, तं न कुलीणेहिं कायव्वं ॥२९॥ इअ सोउ निवो रुटो, भणइ अरे! जाह मंदिरं निययं । सिक्खवह निअयताए, इअ भणिउं ते वि वारेइ ॥३०॥ १२ • नियम्मिय संघं D21 १३ • लेमि न मूलाओ प°L1 | १४ य नामेणं PI१५ रो पुरि Pl P2 D4 LL १६ ° सणव ° P2 LI L2 D1 D4 । १७ • रादिकम् P2 LI DI D4 | १८ मकि. LI DI D2 D4 | १९ कुसीलिहिं L2 । २० विचारे D2 D4 L1 । For Private And Personal Use Only
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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