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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीजयानन्दसूरिविरचिता आह पालिज्जहे' सम्मं, संजममिअ सिक्खिऊण निअसीसा । कयनवमूरिसमेआ, विहारिआ तेण अन्नत्य ॥३१॥ अह चिंतइ मूरिवरो, जाणेहं जामि तायपासम्मि । महई लज्जा हियएँ, सा गंतुं कहवि नो देइ ॥३२॥ जे पुण पिमुणा ते, चच्चिस व्व महकच्चडं करिस्सति । तह[१] गहिअवओ जो मृत्तु सरस्सई आगओ मुभडो ॥३३॥ तो पिउपासि न जामि ति निच्छिऊणं पुणो वि चिंतेइ । विज्जावलं तु जेसिं, पराभवो होइ न हु तेसिं ॥३४॥ विजाइ हुंति मित्ता, जिप्पंति अ सत्तुणो वि विजाए । विज्जालवो वि जाणं, नमंति सव्वे वि नर ताणं ॥३५॥ चोरेहिं जान घिप्पड़, अग्घइ गुणवंतयाण गेहेसु । सा विज्जा मह विउला, तेणें विदेसो वि नियदेसो ॥३६॥ अह सूरी सगकूले, वञ्चइ इगसारिणो समीवम्मि । भण्णइ साहणुसाही, राया अहिं साहिणो सेसा ॥३७॥ सूरी सहाइ वैचइ, बुल्लइ तं जं मुहाइ सव्वस्स । एवं वयणरसेणं, रंजइ रायप्पमुहलोअं ॥३८॥ भणइ निवो धनोऽहं, जं पत्तो सुपुरिसो तुम इत्थ । सोहइ तइम्ह रज्जं, मग्गसु तं जेण तुह कज्जं ॥३९॥ अह जंपइ मूरिवरो, तुज्झ ममत्तेण सव्वमवि लद्धं । मग्गिस्समवसरेऽहं, छुहाइ अन्नं पि पीइकरं ॥४०॥ अह पेसह एअ छुरीए, ससिरम्मि अ आगयम्मि पहुछेहे । विच्छायमुहो साही, पुढो गुरुणा कहइ सव्वं ॥४१॥ अह भणइ गुरू नरवर !, किज्जद मंतो वि को वि अप्पणए । कणगाइदाणओ तह, किज्जइ जह देव ! जीविज्जइ(ज्जा) ॥४२॥ स भणइ निसुणसु सुपुरिस ! जाणासि तुमं न अम्ह निवचरियं । विसमो स भूमिपालो, रुटो पुण जेसि तर्हि कालो ॥४३॥ गिन्हेइ जं गई तं, कह वि न मिल्हेइ गुरु अगम्बंधो । सामत्थेणं सीमालए अ गंजेइ अगंजे ॥४४॥ . अम्हसमनिवइलक्खा, नैमंति एअस्स विहिअनिअरक्खा । न मिडइ रणम्मि कोई भंजइ नामेण भडकोडी ॥४५॥ २१ जइ सम्म D2 । २२ दहई P2 | २३ •ए सो ग°LI DI| २४ • मुहडो L1 DI D4 | २५ •ण वि नियदेसो बि नियवेसो D2। २६ • इ बुच्च °LI DI D4 | २७ • णाहि तु • PILI D21 २८ न संति LI D2 D4 । २९ • निवरक्खा P1 । For Private And Personal Use Only
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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