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SinMahavir Jain AradhanaKendra
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Acharya Suur Klasagarmur Gyarmandir
-खियाँ वन और भूषण आदि के संयोग से गग उत्पन्न करने वालो यानी सुन्दरी प्रतीत होती हैं। खियाँ पुरुषों में परस्पर की मैत्री
को विविध प्रकार से नष्ट कर देती हैं अथवा पुरुषों में प्राचर्य तथा चारित्र के प्रति जो राग होता है उसे अनेक प्रकार से नष्ट करती है। स्त्रियाँ बिना रस्सी का बन्धन है तथा वृक्ष आदि से शून्य घोर कान्तार यानी अटबीस्वरूप हैं अथवा काष्ठ रहित अटवी जैसे मृगतृष्णा का कारण होती है उसी तरह स्त्रियां भ्रान्ति का कारण होती हैं अथवा जैसे काष्ठ रहित अटवी कभी जलती नहीं है उसी तरह खियाँ पाप करके पश्चात्ताप नहीं करती हैं। खियाँ पुरुष को अकर्तव्य करने में प्रवृत्त कर देती हैं। स्त्रियां अदृश्य यानी जो देखने में नहीं आती। ऐसी वैतरणी नदी हैं। स्त्रियाँ असाध्य रोग के समान पीड़ा देने वाली हैं। खियाँ माता पिता आदि के वियोग हुए बिना ही रुदन के समान हैं। खियाँ रूप रहित उपसर्ग हैं। त्रियाँ काम भोग में सुख बुद्धि नत्पन्न करती हैं जो वस्तुतः भ्रान्ति । त्रियाँ समस्त शरीर को जलाने वाली दाहनामक व्याधि हैं। खियाँ बिना मेध के वनपात हैं। स्त्रियाँ चाहे विवाहित हों या अविवाहित हों, अलङ्कत हों या अलङ्कार रहित हों, मुण्डित हों या अमुण्डित हों, किसी भी अवस्था में हों, मोक्ष की इच्छा करने वाले ब्रह्मचारी मुनियों को सवा बर्जित करने योग्य हैं। खियाँ जलशुन्य प्रवाह हैं। अतएव कामी जन बिना ही जल के इन में हुए मरते हैं। जैसे समुद्र के वेग को कोई भी सहन नहीं कर सकता, इसी तरह इनके उपद्रव को भी कोई सहन नहीं कर सकता है। स्त्रियाँ परमस्ने हियों को भी जुदा करा देती हैं।
अवि याई तासि इत्थियाणं अणेगाणि नामनिरुत्ताणि पुरिसे कामरागपडिबद्धे गाणपबिहेहि उवायसयसहस्से हिं वह बंधण माणयंति, पुरिसाणं नो अएणो एरिसी भरी अस्थिति णारीयो, तंजहा गारीसमा न पराणं अरीमो
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