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SA.Mahavir Jain AradhanaKendra
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जैसे दोन जन सदा ही द्रव्य के लाभ से हाथ पसारे रखते हैं उसी तरह स्त्रियाँ भी सदा ही लोभ वश हाथ पसारे रहती हैं। दुष्ट कर्म करने वाली स्त्रियाँ सदा ही नरकवत् भय उत्पन्न करती रहती हैं। विष्ठा भक्षण करने वाले गर्दभ के समान त्रियों का भाचरण दुष्ट होता है। दुष्ट घोड़ा जैसे वश में नहीं किया जा सकता है उसी तरह खियाँ भी वश नहीं की जा सकती हैं। बालक की तरह इनका राग क्षणिक होता है। अन्धकार में प्रवेश करना जैसे कठिन होता है उसी तरह खियों के कपट पूर्ण व्यवहार को जानना कठिन होता है। विष की लता के समान ही खियाँ आश्रय लेने योग्य नहीं हैं। दुष्ट प्राह से सेवित बावड़ी जैसे प्रवेश के योग्य नहीं होती है उसी तरह त्रियाँ भी सेवन करने के योग्य नहीं हैं। अपने पद से भ्रष्ट प्राम तथा नगर का स्वामी अथवा चारित्र से भ्रष्ट साधु अथवा तत्सूत्र प्ररूपमा करने वाला आचार्य जैसे प्रशंसा के योग्य नहीं होता है उसी तरह खियाँ प्रशंसा के योग्य नहीं होती। जैसे किंपाकक्ष का फल, खाते समय मधुर प्रतीत होता है परन्तु शीघही प्राण को हरण कर लेता है उसी तरह नियाँ विषय भोग करते समय मधुर प्रतीत होती हैं परन्तु परिणाम में दुख स्पन्न करती हैं।
जैसे खाली मुट्ठी को देख कर बालक को लोभ सत्पन्न होता है उसी तरह त्रियों को देख कर अज्ञानी जीव ही लुब्ध होते हैं। जैसे किसी पक्षी ने कही मांस का टुकड़ा पाया हो तो दूसरे दुष्ट पक्षी उस मांस खण्ड को ले लेने के लिये बहुत सपब करते हैं उसी तरह सुन्दर स्त्री के कारण नाना प्रकार के उपद्रव हुमा करते हैं। जैसे मछलियों के लिये मांस का प्रहण उपद्रव युक्त होता है इसी तरह खियों का प्रण सपतव युक्त होता है। जैसे जलती हुई तृण की पूली जलाने पानी होती है उसी तरह त्रियाँ स्वभाव
ही जलाने वाली होती है। घोर पाप जैसे चलान करने योग्य नहीं होता है किन्तु ससका फल दुःख भोग करना ही पड़ता है उसी | तरह सी में भासक्त पुरुष को स्त्री द्वारा उत्पादित दुःख भोग करना ही पड़ता है। जैसे नकली पैसा समय पर धोखा देता है उसी
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