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________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir मङ्गल कार्य करता है। उसके पश्चात् सशीर्षस्नान करके करठ में फूलों की माला धारण करता है। उसके पश्चात् मणि और सुवर्ण के भूषणों को धारण करके निर्मल और बहुमूल्य वस्त्र पहनता है तथा अगों में चन्दन का लेपन एवं उत्तम गन्धयुक्त गोशीपचन्दन का तिलक लगा कर पवित्र पुष्पों की माला धारण करता है एवं शरीर की शोभा वृद्धि के लिए केशर का भी लेपन करता है। इसके पश्चात् पाठलद और तीन जड़ वाले हारों को पहन कर उनके ऊपर एक नम्बा हार पहनता है तथा कमर में कटिसूत्र को धारण कर गोप तथा अंगुठियों को धारण करता है। इसी तरह हाथ और भुजाओं में भूपणों को धारण कर के भुजाओं को भर देता है और कानों में कुपहल धारण करके मुख की शोभा को बढ़ाता है, शिर के ऊपर मुकुट धारण करके शिर को दीप्त करता हुआ छाती को हारों से ढंक कर उसको अत्यधिक शोभनीय कर देता है । लम्बे वक्ष की चादर धारण करके अँगुठियों द्वारा अपनी अङ्गलियों को पीतवर्ण कर देता है। वह अपने हाथ में वीर कटक धारण करता है। वह वीरकटक निर्मल और श्रेष्ठ शिल्पी द्वारा रचित तथा स्वच्छ किया हुआ चमकदार, मनोहर और उत्तम सन्धिभाग वाला होता है और अधिक कहाँ तक वर्णन किया जाय ? जैसे कल्पवृक्ष पत्र पुष्प और फलों द्वारा विभूषित होता है, उसी तरह वह सब प्रकार से पवित्र होकर अपने माता पिता के पास जाकर उनके चरणों में प्रणाम करता है। उसको माता पिता आशीर्वाद देते हुए कहते हैं कि हे पुत्र! तुम सौ वर्ष तक जीवन धारण करो। परन्तु उसकी आयु यदि सौ वर्ष की होती है तो वह सौ वर्ष तक जीता है, नहीं तो नहीं जीता है। वह सौ वर्ष की आयु भी कोई अधिक नहीं है। क्योंकि जो सौ वर्ष जीता है वह भी बीस युग ही जीता है। युग ५ वर्ष का माना जाता है, इसलिये सौ वर्ष में २० युग होते हैं। जो पुरुष बीस युग जीता है वह दो सौ अयन तक जीता है। छः मास का एक अयन होता है। जो दो सौ अयन तक जीता है यह सौ ऋतु तक जीता है और छ: सौ ऋतु तक जीने वाला मनुष्य बारह सौ मास तक जीता है। जो बारह सौ For Private And Personal Use Only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
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