SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 मास तक जीता है वह चोवीस सौ पक्ष तक जीता है जो चौवीस सो पक्ष तक जीता है वह ३६००० छत्तीस हजार अहोरात्र तक जीता है जो छत्तीस हजार अहोरात्र तक जीता है दइ दस लाख और अस्सी हजार मुहूर्त्त तक जीता है जो दस लाख और अस्सी हजार मुद्दत्त तक जीता है वह चार अरब सात फोटि अड़तालीस लाख और चालीस हजार उवास तक जीता है। जो मनुष्य इतने समय तक जीता है वह साढ़े बाईस तन्दुलवाद जो आगे कहा जाने वाला अन्न का प्रमाण है उतना अन खा जाता है । प्रश्न - हे भगवन् ! सौ वर्ष तक जीने वाला संसारी मनुष्य सौ वर्ष में साढ़े बाईस तन्दुलवाह अन्न किस तरह खा जाता है सो बतलाइये । उत्तर - हे गौतम! दुर्बल स्त्री ने जिसे खण्डन किया है और बलवती स्त्री ने सूत्र के द्वारा जिसको साफ किया है तथा जो खदिर (खैर) के मुसल से कूट कर विना तुप का कर दिया गया है एवं जिसके दाने टूटे हुए नहीं हैं तथा जिसमें से कडुन आदि चुन कर बाहर निकाल दिये गये हैं ऐसे साढ़े बारह पल चावलों का एक प्रस्थक होता है। पक्ष का प्रमाण इस प्रकार समझना चाहियेपाँच का एक माप होता है और सोलह मापों का एक कर्पं होता और चार कर्पे का एक पल होता है। इस प्रकार ३२० गुजा के प्रमाण को एक पल कहते हैं। ऐसे साढ़े बारह पलों का एक प्रस्थक होता है जो मागध भी कहा जाता है। उस प्रस्थक या मागध के प्रमाण से प्रतिदिन प्रातः काल के भोजन के लिये एक प्रस्थक तथा सायंकाल के भोजन के लिए एक प्रस्थक अन्न की आवश्यकता होती है। एक प्रस्थक में ६४ हजार चावल के दाने होते हैं। दो हजार चावल के दानों का एक For Private And Personal Use Only ४५
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy