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SA.Mahavir Jain AradhanaKendra
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उपयोग है। उसका अर्थ, राज्य, काम और भोग में परिणाम है। वह अर्थ, राज्य, भोग और काम के सम्पादन का ही विचार रखता है। वह इन्हीं के लिये तीन प्रयत्न करता है तथा इन्हीं के लिये सदा तैयार रहता है। वह अपनी समस्त इन्द्रियों को इन्हीं में अर्पित किया हुआ इनकी भावना से ही भावित रहता है। उस समय यदि उसकी मृत्यु होजाय तो वह अत्यन्त दुःख पूर्ण नरक में उत्पन्न होता है। हे गौतम ! यही कारण है कि-गर्भवासी जीव कोई नरक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं होता है।
जीवेणं भंते ! गभगए समाणे देवलोएसु उववज्जिज्जा ? गोयमा ! अत्थेगहए उववज्जिज्जा, अस्थगइए णो उवयज्जिज्जा। से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ अत्थेगइए उववज्जिज्जा अत्थेगइए णो उववज्जिज्जा ? गोयमा ! जे णं जीवे गभगए समाणे सगणी पंचिदिए सव्वाहि पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वेउब्बियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए तहारूवस्स समणस्स बा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सुच्चा णिसम्म तयो से हवइ तिब्ध संवेग संजायसढे तिब्बधम्माणुरागरते से णं जीवे धम्मकामए पुगणकामए सग्गकामए मुक्खकामए धम्मकंखिए पुगणकंखिए सग्गर्कखिए मुक्खकंखिए धम्मपिवासिए पुण्णपिवासिए सग्गपिवासिए मुक्खपिवासिए तच्चिचे तम्मणे तल्लेस्से तयज्झवसिए तत्तिब्यज्झवसाणे तदप्पियकरणे तयट्ठोवउत्तं तब्भावणाभाविए एयसि णं (चे) अंतरंसि कालं करिज्जा देवलोएसु उववज्जिज्जा, से एएणं अद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ अत्थे गइए उववज्जिज्जा अत्थेगइए णो उववज्जिज्जा ॥ सूत्र ८ ॥
छाया-जीवो है भदन्त ! गर्भगतः रुन् देवलोकेषत्पदयते । हे गौतम ! अस्त्वेकक उत्पदयते, अस्त्येकको नौत्पदघते । अथ केनार्थेन हे भदन्त ! एवमच्यते अस्त्येकक उत्पदयते, अस्त्येकको नोत्पदयते । हे गौतम ! यो जीवो गर्भगतः सन् संशी पञ्चेन्द्रियः सर्वाभिः पर्याप्तिभिः
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