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छाया-जीवो भदन्त ! गर्भगतः सन् नरकंकृत्पदधते ? गौतम ! अस्त्येकक उत्पदयते अरत्येकको नोत्पदयते । अथ केनार्थन भदन्त ! एवमुच्यते जीवः गर्भगतः सन् नरकेषु अस्त्येकक उत्पदयते अस्त्येकको नोत्पदधते ? गौतम ! जीवः गर्भगतः सन् संशी पम्चेन्द्रियः सर्वाभिः पर्याप्तिभिः पर्याप्तः वीर्यलन्ध्या विभङ्ग ज्ञानलब्ध्या चैकियलन्धिप्राप्त; परानीकमागतं श्रुत्वा निशम्य प्रदेशान निःक्षम्नाति बैंक्रियसमुद्घातेन समवहन्ति समयहत्य चतुरहिणी सेना सबाहयति, सबाह्य परानीकेन साध संग्राम संग्रामयति, स जीवोऽर्थकामुकः राज्यकामुकः भोगकामुक कामकामकः, अर्थकानिक्षतः भोगकाकि क्षतः कामकाङि क्षतः, अर्थ पिपासितः भोग राज्य काम पिपासिता, तचियः तन्मनाः तल्लेश्यः तदध्यवसितः तचीमाध्यवसानः तदर्थोपयुक्तः तार्पितकरणः तद्भावनाभावितः एतस्मिनन्तर काल फारपिके घपदयते । कौतेनार्थेन एकमुच्यते जीवः गर्भगतः सन् नरकेषु अस्येकक उत्पदचते अत्येकको नोत्पदयते गौतम ॥७॥
भावार्थ-हे भगवन् ! गर्भवासी जीव मर कर क्या नरक में उत्पन्न होता है? हे गौतम ! कोई कोई जीव उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता है। हे भगवन ! गर्भवासी जीव कोई कोई मर कर नरक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं होता है इसका क्या कारण है? गौतम ! गर्भवासी संशी पन्चेन्द्रिय जीव जो सभी पर्याप्तियों से पूर्ण होगया है वह पूर्वभव की वीर्यलब्धि, विभङ्गज्ञान लब्धि और बैंक्रियलब्धि को प्राप्त करके शत्रु की सेना को भाई हुई सुन कर तथा मन से निश्चय करके अपने प्रदेशों को गर्भ से बाहर निकालता है और बैंक्रियलब्धि समुद्रात के द्वारा हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेना तैयार करता है। इस प्रकार यह शत्रु की सेना के साथ संग्राम करता है। उस मनुष्य की द्रव्य में इच्छा है तथा राज्य, भोग और काम में इच्छा है। वह द्रव्य, राज्य, भोग और काम में आसक्त है। उसकी धन, राज्य, भोग और काम में तृप्ति नहीं है। उसका धन, राज्य, भोग और काम में उपयोग है तथा इन्हीं में उसका विशेष
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