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गीतिका
आत्मन् ! तू तीनों योगों-मन, वचन और काया-को स्थिर कर जिनशासन के नायक, परम शान्ति के दाता भगवान् महावीर की उपासना
आत्मन् ! तु जिनशासन के नायक, बिना किसी स्वार्थ के दूसरों पर करुणा करने वाले तथा अनेक विघ्नों को नष्ट करने वाले भगवान महावीर की बार-बार उपासना कर ।
१. आकांक्षाओं के वशीभूत होकर तू दूसरों की उपासना करता है, किन्तु वे
कभी भी तेरे (ऊर्ध्वगमन में) सहायक नहीं होते । २. जो स्वयं असहाय हैं, वे तेरा संरक्षण कैसे करेंगे ? अरे ! सर्प से डसे
व्यक्ति को क्या मेंढक की शरण त्राण दे सकती है ? ३ जो मनुष्य भगवान् महावीर के चरणों में लीन हो जाते हैं, वे संसार
समुद्र में नहीं डूबते । वे स्वल्प समय में ही शाश्वत सुखमय मोक्ष को
पा लेते हैं। ४. 'चन्दन' ! त् 'पर' की उपासना छोड़कर 'स्व' (जिनेश्वर) की उपासना कर ।
'पर' की उपासना से भग्न मानसवृत्ति के ये सुन्दर संधायक हैं---जोड़ने वाले हैं।
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