SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ सूत्रकृतागसूत्रे वन्याः पशवो यदा ग्रामं प्रविशन्ति तेषां शुभाऽशुभफलपतिपादकं शास्त्रम्, मृगचक्रमित्यभिधीयते, 'वायसपरिमंडलं' वायपपरिमण्डलम्, काकादिपरिवर्तन संम्. चिताऽरिष्टज्ञापकं शास्त्रम् पंसुवुट्टि' पांसुवृष्टिम् धूलिवृष्टेः फलपतिपादकं शास्त्रम्, 'केसवुट्टि' केशष्टिम् केशवर्षणफलपतिपादकं शास्त्रम् 'मंसर्टि' 'मांसवृष्टिम्-मांसवर्षणननि तफल गरिपादक शास्त्रम् 'वेतालिं' वैशालीम्. यस्या विद्याथाः संसिद्धौ - सत्यां काष्ठादावपि अचेतने चेना प्रवर्तते 'अद्धवे. तालि' अर्द्धवैतालीम्-वैताली विद्यायाः प्रतिपक्षभूताम् 'ओसोगि' अपस्वापिनीम्निद्राकारिणीम् 'तालुग्घाडगि' तालोद्घाटनीम् 'सोवाणि' श्वापाकीम्-चाण्डलविद्या मित्यर्थः, 'सोवरि' शाम्बरीम्-शम्बरसम्बन्धिनी विद्याम् दामिलिं' द्राविडीम् 'कालिंगि' कालिङ्गीम् 'गोरि गौरीम् 'गंधारि' गान्धारीम् 'ओ तागि' दिखने का फल प्ररूपित करने वाला शास्त्र (४१) वायसपरिमंडलकाक आदि पक्षियों की बोली का फल कहने वाला शास्त्र (४६) पांशुवृष्टि-धुलिवर्षा का फल निरूपण करने वाला शास्त्र (४३) केश वृष्टि-केश वर्षा का फल कहने वाला शास्त्र (४४) मांसवृष्टि का फल कहने वाला शास्त्र (४५) रुधिरवृष्टि का फल कहने वाला शास्त्र (४६) वैताली-जिस विद्या से अचेतन काष्ठ में भी चेतना आ जाती दीखती है (४७) अर्द्ध वैताली-वैताली विद्या की विरोधिनी विद्या (४८) अवस्वापिनी-जिससे जागता हुआ मनुष्य सो जाता है। (४९) तालोद्घाटनी-ताला खोल देने वाली विद्या (५०) श्वपाकी-चाण्डाल विद्या (५१) शाम्बरी-शंबर संबंधी विद्या (५२) द्राविडी विद्या (५३) कालिंगी विद्या (५४) गौरी विद्या (५५) गांधारी पाणी विधा (36) हा-हा मताचा पाणु शास्त्र (४०) भृगयગ્રામ પ્રવેશના સમયે જનાવરોને જેવાના ફળને બતાવવા વાળું શાસ્ત્ર (૪૧) વાયસ પરિમંડલ-કાગડા વિગેરે પક્ષિયની બેલીના ફળને બતાવવાવાળું શાસ્ત્ર (૪૨) પાંશુવૃષ્ટિ-ધૂળ વર્ષના ફળ બનાવનારૂં શાસ્ત્ર (૪૩) કેશવૃષ્ટિ કેશवर्षाना गर्नु नि३५५ ४२वाप.गु शास्त्र (४४) मांस वृष्टि-॥र (४५) ३धिर. વષ્ટિ શાસ્ત્ર (૪૬) વૈતાલી–જે વિદ્યાથી અચેતન-સૂકા લાકડામાં પણ ચેતન આવી જાય છે. (૪) જે અર્ધવૈતાલી વૈતાલીવિદ્યાની વિરોધીની વિદ્યા (૪૮) અવસ્થાપિની જે વિદ્યાના બળથી જાગતે માણસ પણ ઉંઘી જાય છે. (૯) તાલેદઘાટની-તાઈ ઉઘાડીનાખવા વાળી વિદ્યા (૫૦) ધપાકી–ચાણડાલ વિદા (૫૧) શામ્બરી-શંબર સંબંધી વિદ્યા (પર) દ્રાવિડી વિદ્યા (૫૩) કલિંગી Iqil (५४) गौरी विधा (५५) गांधारी विद्या (५६) भ१५तनी विधा-नाये For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy