SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० सूत्रकृताङ्गसूत्रे तीथिकादेः चशब्दाद् धर्मपतिपक्षभूतम् अधर्म पापम्, शीळमतिपक्षभूतम् अशीलम्-कुत्सितशीलम्, अशान्तिम् मोक्षाभावरूपाम्, एतत्सर्व प्राटयिष्यामि ॥१॥ मूलम्-अहो य राओ य समुट्रिएहि, तहागएहि पडिलन्भधम्म। समाहि माघायमजोसयंता, संस्थारमेवं फैरुसं वैयंति॥२॥ छाया-अहनि च रात्रौच समुत्थितेभ्य, स्तथागतेभ्यः प्रतिलभ्य धर्मम् । समाधिमाख्यातमजोषयन्तः, शास्तारमेवं परुष वदन्ति ॥२॥ विहार आदि शील को, समस्त कर्मक्षयस्वरूप मोक्ष को प्रकट करूंगा एवं असत्पुरुष के अधर्म को, कुशील को और मोक्षभाव को भी प्रकट करूंगा ॥१॥ 'अहो य रामो य' इत्यादि। शब्दार्थ- 'अहो य-अहनि च' दिन में 'राओ य-रात्रौ च रात्री में 'समुट्ठिएहि-समुत्थितेभ्यः' उत्तम अनुष्ठान करनेवाले श्रुतचारित्रको धारण करनेवाले को तथा 'तहागरहि-तथागतेभ्यः' तीर्थकरों से 'धम्मधर्मम्' श्रुतचारित्ररूप धर्म को 'पडिलब्भ-प्रतिलभ्य' प्राप्त करके 'अघायं-आख्यातम्' तीर्थकरोक्त 'समाहि-समाधि' समाधिका 'अजोसयंता-अजोषयन्तः' सेवन न करते हुए (जमालिभादिनिहव) 'सत्यारशास्तारम्' अपने गुरु आदिको ही 'एवं-एवम् उक्त प्रकारसे 'फरसंपरुषम्' कठोर वचन 'वयंति-वदन्ति' कहते हैं ॥२॥ વિગેરે શીલને, સઘળા કર્મોના ક્ષયરૂપ મોક્ષને પ્રગટ કરીશ. તથા અપુરૂ ષના અધર્મને, કુશીલને, અને મોક્ષભાવને પણ પ્રગટ કરીશ. ૧ 'अहो य राओ य' त्या श५४.-अहो य-अहनि च' पिसभा 'राओ य-रात्रौ च' शो 'समुद्विएहि समुत्थितेभ्यः' उत्तम अनुहान ४२वावाणा श्रुत यात्रिने धार ४२११ वाजाने तथा 'तहागरहि-तथागतेभ्यः' ती ४२। पासेथी 'धम्म-धर्म म्' श्रुत यास्त्रि३५ धमान 'पडिलन्भ-प्रतिलभ्य' प्रात ४शन 'अघाय-आख्यातम्' तीथ रात समाहि-समाधि' समाधिनु ‘अजोसयता-अजोषयन्तः' सेवन न ४रीन (भाटी विगैरे नियो) 'सत्थार'-शास्तारम्' पोताना १३ विगैरेने ४ ‘एवं-एवम्' तशत 'फरुसं-परूषम्' ।२ पयन वयंति-वदन्ति' ४९ छे. ॥२॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy