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सूत्रकृताङ्गसूत्रे मूलम्-पूई कम्मं ने सर्विजा, एस धम्मे बुसीमओ।
जं किंचि अभिकखेज्जा, सव्वसो त ने कैप्पए ॥१५॥ छाया-पूतिकर्म न सेवेत, एष धर्मों वृषिमतः ।
यत्किश्चिदभिकाङ्क्षत्, सर्वशस्तन्न कल्पते ॥१५॥ अन्वयार्थ:-(पूई कम्मं न सेविना) पूतिकर्म-केनाऽपि आधार्मिकाय. शुद्धाहारेण संपृक्तमाहारादिकं न सेवेत-न भुजीत (वुसीमभो एस धम्मे) वृषि करके जो आहार पानी आदि तैयार किया गया हो उसको साधु ग्रहण न करे ॥१४॥
'पूईकम्मं न सेविजा' इत्यादि।
शब्दार्थ-'पूईकम्मं न सेदिज्जा-पूतिकर्म न सेवेत' जो आहार आधाकर्मी आहार के एक कणसे भी युक्त हो साधु उसका सेवन न करे. 'सीमओ एस धम्मे-संयमवतः एषधर्म' शुद्ध संयम पालन करने वाले साधु का यही धर्म है 'जं किंचि अभिफंखेज्जा-यत्किंचित् अभिकांक्षेत्' शुद्ध आहार में भी यदि अशुद्धिकी आशंका हो जाय तो 'सव्यसो तं न कप्पए-सर्वशः तन्न कल्पते' वह आहार भी साधुको ग्रहण करने योग्य नहीं है । १५॥ __अन्यायर्थ--साधु पूतिकर्म आहार का अर्थात् जिस आहार में आधाकर्मी का थोडा सा भी अंश (सिथ मात्र मिला हुआ हो, सेवन ધના કરીને જે આહાર પાણી વિગેરે તૈયાર કરવામાં આવેલ હોય તેને સાધુ घड न ४२ ॥१४॥
'पूईकम्मं न सेविज्जा' त्यहि
A:--पूईकम्मं न सेविज्जा-पूतिकर्म न सेवेत' 2 201२ 14. કમી આહારના એક કણથી પશુ યુક્ત હોય તેવા આહારનું સેવન કરવું नन 'बुसीमओ एस धम्मे-संयमवतः एष धर्मः' शुद्ध सयभनु पावन ४२वा पाय साधुने। मे०४ ५५ छ. 'जकिंचि अभिकंखेज्जा-यत् किश्चित् अभिकांक्षेत्' शुद्ध भाडामा ५ ले सशुद्ध पानी माश। २४ती उय तो 'सव्वसो तं न कप्पए-सर्वशः तन्न कल्पते' ते माडा२ ५५ साधुन ग्रहण ४२१॥ યોગ્ય નથી. ૧પ
અન્વયાર્થ–સાધુએ પૂતિકર્મ આહાને અર્થાત્ જે આહારમાં આધાકમિન ડે અંશ પણ (સિયાત્ર) મળેલ હોય તેનું સેવન કરવું નહીં આ
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