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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.३ उ.१ उपसर्गजन्यतपःसंयमविरराधनानि० ९३ मूत्रम्-एवं तु समणा एगे अवलं नञ्चा ण अप्पगं ।
अणागयं भयं दिस्स अविकप्पतिमं सुयं ॥३॥ छाया-एवं तु श्रमणा एके अवलं ज्ञात्वा खेल्वात्मानम् ।
___ अनागतं भयं दृष्ट्वाऽजकल्पन्तीदं श्रुतम् ॥३॥
अन्वयार्थः-(एवं तु) एवं तु (एगे समणा) एके श्रमणा:-अल्पमतयः (अप्पगं) आत्मानम् (अवलं) अबलं-यावज्जीवसंघमभारवहनासमर्थम् (णचा ण) ज्ञात्वा खल (अणागयं) अनागतं (भयं दिस्स) भयं दृष्ट्वा (इमं सुयं) इदं व्याकरण गणितादिश्रुतम् (अविकप्पंति) अवकल्पयन्ति इति ॥३॥
टोका--'एवं एवम् पूर्वोक्तदृष्टान्तेन-'एगे समणा' एके श्रमणाः=एके
शब्दार्थ--'एवं तु-एवं तु इस प्रकार 'एगे समणा-एके श्रमणः' कोई अल्प मतिवाले श्रमण 'अप्पा-आत्मानम्' अपने को 'अवलं-अघलम्' जीवनपर्यन्त संयम पालन करने में असमर्थ 'णच्वा ण-ज्ञावा खलु' जानकर 'अणागयं-अनागतम्' भविष्यकाल के 'भयं दिस्स-भयं दृष्ट्वा' भय को देखकर 'इम-सुयं-इदं श्रुतम्' व्याकरण एवं ज्योतिष आदि को 'अधिकपंति-अविकल्पयन्ति' अपने निर्वाह का साधन बनाते हैं ॥३॥ __अन्वयार्थ--इसी प्रकार कोई कोई अल्पमति श्रमण अपने को निर्षल अर्थात् जीवनपर्यन्त संयम का भार वहन करने में असमर्थ जानकर भावी भय को देखकर व्याकरण गणित आदि श्रुत की कल्पना करते हैं ॥३॥ टीकार्थ--पूर्वोक्त दृष्टान्त के अनुसार कोई कोई अल्पसत्व कायर
शा --'एवं तु-एवं-तु' । १२ 'एगे-समणा-एके श्रमणाः' अध भ६५शुद्धिवाणा श्रम 'अप्पां-आत्मानम्' पाताने 'अबलं-अबलम्' 41 पयत सयम पालन ४२पामा असमर्थ 'णच्चा ण- ज्ञात्वा खलु' oneीने 'अणागयं-अनागतम्' भविष्य11 "भयं दिस्स-भयं दृष्ट्वा ' मयने नन 'इमं सुयं-इदं श्रुतम्' व्या३२६] सवयोतिष वगैरेने 'अविकपति-अविकल्पयन्ति' पोताना निवडन साधन नाव छे. ॥3॥
સૂત્રાર્થ_એજ પ્રમાણે કઈ કઈ અલ્પમતિ સાધુ સંયમ રૂપ ભારનું જીવનપર્યત વહન કરવાને પોતાની જાતને અસમર્થ માનીને, ભાવી ભયને ઈને વ્યાકરણ, ગણિત, આદિ શ્રતની કલ્પના કરે છે. સા.
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