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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थ बोधिनी टीका प्र. अ. २ उ. ३ साधूनां परिषहोपसर्ग सहनोपदेशः ६४१ अन्वयार्थः ( जहा ) यथा वा (वाण) वाहकेन (विच्छ९) विक्षतः = ताडित: ( पचोइए) प्रचोदितः = प्रेरित: ( अवले गवं ) अवलो गौ: = दुर्वलो गौः न प्रचलति किन्तु (से) सः (अप्पथामए) अल्पस्थामा = अल्पसामर्थ्यवान् ( अबले) अवलो = दुर्बल: (अंतसो ) अंतरा: = मरणान्तमपि ( नाइवर) नातिवहति = भारं वोदु समर्थो न भवति अपि तु ( विसी) विषीदति पंकादौ इति ||५|| सूत्रकार पुनः उपदेश करते है - " वाहेण जहा" इत्यादि । शब्दार्थ - 'जहा - यथा' जिसप्रकार 'वाहेण - वाहेन' गाडीवान् के द्वारा 'विच्छए - विक्षत' चाबुक मारकर 'पवोइए - प्रचोदितः प्रेरित किया हुआ 'अवले गवं - अवलो गौः' दुर्बल बैल चलता नहीं है, परंतु 'से- सः' वह 'अप्पथामए - अल्पस्थामा' अल्पसामर्थ्य वाला 'अवले -अवल:' दुर्बल बैल 'अंतसो - अन्तशः ' मरण पर्यन्तभी 'नाइवहर - नातिवहति' भारवहन नहीं कर सकता है परंतु 'विसीय - विषीदति कीचड आदि में फंसकर क्लेश भोगता है ||५|| - अन्वयार्थ जैसे वाहक (गाडीवान) के द्वारा ताडना पाने पर और प्रेरित होने पर भी दुर्बल बैल चलता नहीं, सामर्थ्यहीन और निर्बल होने के कारण मरण पर्यन्त भी वह भार वहन करने में समर्थ नहीं होता, किन्तु कीचड आदि में फस कर दुःखी होता है ||५|| ८८ सूत्रार भागण उपदेश व्यापता हे छे - “ वाहेण जहा " प्रत्याहि शब्दार्थ - 'जहा यथा' ने प्रारे 'वाहेण वाहेन' गाडीवाणाना द्वारा 'विच्छएविक्षतः' या भारीने 'पचोईए- प्रचोदितः' प्रेरित रे ' अबले गवं - अवलो गौः ' हुर्मण मगह श्राद्यतो नथी, परंतु 'से- सः' ते 'अव्ययात्रए - अल्पस्थामा अस्य सामर्थ्य वाणा 'अबले - अवचः' दुर्मण मगह 'अंतसो - अंतरा' भर पर्यन्त पशु 'नाइवहद - नातिवहति' भारवाडुन डेरी शस्तो नथी परंतु 'विसीय विषीदति' अहव वरोरेमा इसाधने उदेश लोगये थे. ॥ ५ ॥ -:सूत्रार्थ: ગાડું હાંકનાર માણસ દ્વારા ગમે તેટલી મારપીટ આદિ કરવામાં આવે તે પણ દુળ ખળદ ચાલતા નથી. સામર્થ્ય હીન અને નિબળ હોવાને કારણે તે મરણ પન્ત પણ ભારને વહન કરી શકવાને સમર્થ હાતા નથી, એવા બળદ તા પોતાની કમોરીને કારણે કાદવ ક્રિમાં ફસાઇને દુઃખી જ થાય છે. પાા सु, ८१ For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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