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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतासूत्रो "जगत्सृष्टिविषये ततोऽन्येषां मतं दर्शयति सूत्रकार:-"माहणा समणा" इत्यादि। माहणो समणा एगे आह अंडकडे जगे। असो तत्तमकासीय अयाणंता मुसं वदे-11८ छायाबाह्मणाः श्रमणा एके, आहुरण्डकृतं जगत् । असौ तत्त्वमकार्षीचा जानन्तो मृषा वदेत् -||८ अन्यवार्थ:(एगे) एके केचित् । (माहणा) ब्राह्मणाः =वेदवादिनः। तथा-(समणा) श्रमणाः त्रिडण्डिप्रभृतयः पौराणिकादयश्च । (जगे) जगत्, स्थावरजंगमात्मको जगत् की रचना के विषय में सूत्रकार अन्य मतों का उल्लेख करते हैं-- 'माहणा समणा,' इत्यादि । शब्दार्थ-एगे-एके' कोई 'माहणा-ब्राह्मण ब्राह्मणाः तथा 'समणा श्रमणाः' श्रमणजन 'जगे-जगत्' यह लोक 'अंडकडे-अंडकृतम्' अंडासे वनाहुवा 'आह -आहुः' कहते हैं 'असो-असो' यह ब्रह्माने तत्तं-तत्त्वम्' पदार्थसमूहको अकासी अकार्षीत्' बनाया है 'अयाणता-अजानन्तः' वस्तुतत्वको न जानने वाले वे ब्राह्मणादि ‘मुसं-मृपा' झूठा 'वदे-बदन्ति' कहते हैं ॥८॥ अन्वयार्थ___ कोई कोई ब्राह्मण अर्थात् वेदवादी और श्रमण त्रिदण्डी पौराणिक आदि कहते हैं कि जगत् अंडे से बना है और ब्रह्मा ने पदार्थ समूह की रचना की है। જગતની રચનાના વિષયમાં જે અન્ય મતે ચાલે છે તેમને નિર્દેશ કરીને સૂત્રકાર मा मान्यताव्याने मिथ्या छ-"माहणा समणा" त्या शहाथ--'एगे-एके' 5 'माहणा ब्राह्मगाः ब्राह्मण तथा 'समणा-श्रमणा' श्रममन 'जगे जगत्' मा स (ससा२) 'अंडकडे-अंकृतम्' माथी मनेस 'आह-आहुः' ४ छ. 'असो असौ २॥ ब्रह्माये तत-तत्त्वम्' पहा समूडने 'अकासी-अकार्षीत्' नावेस छ. 'आयण ता-अजानन्तः' वस्तुतत्पने ना ! ते माझए वगैरे 'मुस-मृपा' मोटु वदे यान्ति' डे छे. ॥८॥ मस्याथકઈ કઈ બ્રાહ્મણે (વેદવાદીઓ) શમણું ત્રિદંડીઓ અને પૌરાણિક કહે છે કે જગત ઈંડામાંથી બન્યું છે, અને બ્રહ્માએ પદાર્થસમૂહની રચના કરી છે. આ પ્રમાણે For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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