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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयाथ बोधिनी टीका प्र शु. अ. १ चार्वाकादिवौद्धान्तवादीनामकलवदित्वम् २४७ - छायातेनापि संधि ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः। ये ते तु वादिन एवं न ते दुःखस्य पारगाः ॥२४॥ अन्वयार्थः पूर्ववदेव । व्याख्या निगदसिद्धा, नवरम्-ते वादिनः दुःखस्य= शारीरमानससम्बन्धिनः पारगाः पारगामिनः न भवन्ति दुःखसागरे निमग्ना एव भवन्ति ॥२४॥ पुनरप्याह-'तेणा वि संधि इत्यादि मूलम्तेणा वि संधि णचाणं न ते धम्मविओ जणो । जे ते उ वाइणो एवं न ते मारस्स पारगा ॥२५॥ छाया तेनापि सन्धिं ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः । ये ते तु वादिन एवं न ते मारस्य पारगाः ॥२५॥ फिर कहते हैं-" ते णावि" इत्यादि । शब्दार्थ-'ते-ते वे अन्यतीथी 'णावि संघिणच्चा ण-नापि सन्धि' ज्ञात्वा खलु सन्धिको जाने विनाही क्रिया प्रवृत्त होते हैं 'ते जणा धम्मविओ न-ते जनाः धर्मविदः ने वे लोग धर्म को नहीं जानते हैं 'जे ते उ एवं वाइणो-ये ते तु एवं वादिनः' मिथ्यासिद्धांत की प्ररूपणा करने वाले घे अन्यतीर्थी 'दुक्खस्स पारगा न-दुःखस्य पारगाः न दुःखको पार नहीं कर सकते है ॥२४॥ -अन्वयार्थ:अर्थ और व्याख्या पूर्ववत् ही है। विशेष यह है कि-वे वादी दुःख के पारगामी नहीं होते अर्थात वे दुःख सागर में डूबे ही रहते हैं ॥२४॥ qणी सूत्र७२ ४ छ-" तेणापि त्यादि शाय- 'ते-ते ते भन्यताथा ‘णावि संधि णच्चा ण-नापि सन्धि ज्ञात्वा खलु' मसरने याविना प्रियामा प्रवृत्त थाय छे. 'ते जणा धम्मविओ न-ते जनाः धर्म विदः न' तेयो धर्मवेत्ता नथी. 'जे ते उ एवं वाइणो-ये ते तु एवं वादिनः' मिथ्या सिध्यातनी प्र३५ ४२वावागायो सेवा ते मन्यतीथी . 'दुखस्ल पारगा न "दुःखस्य परगान हुमने पा२ री शता नथी ॥२४॥ (मन्वयार्थ) આ ગાથાને અર્થ તથા વ્યાખ્યા પૂર્વવત્ જ છે. અહી એટલું જ વિશેષ ક્વન કરવું જોઈએ કે તેઓ દુઃખસાગરમાં જ ડૂબેલાં રહે છે. એ ૨૪ For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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