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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ सूत्रकृताङ्गसूत्रो - अन्वयार्थः पूर्ववदेव । व्याख्या सूत्रसिद्धा, नवरम्-ते वादिनः जन्मनः = उत्पत्तिरूपस्य पारगा न भवन्ति जन्मनो जन्मान्तरं सततं गच्छन्ति किन्तु मुक्तिं न प्रामुवन्ति,उक्तश्च"व्रजन्तो, जन्मनो जन्म, लभन्ते नैव निवृतिम् इति ॥२३॥ पुनरप्याह-'तेणा वि संधि' इत्यादि । तेणा वि संधि णचाणं न ते धम्मविओ जणा । ये ते तु वादिन एवं ण ते दुक्खस्स पारगा॥२४॥ धर्म को जानने वाले नहीं हैं 'जे ते उ एवं बाइणो-ये ते तु एवं वादिनः' मिथ्यात्वके सिद्धान्तकी प्ररूपणा करने वाले वे लोग 'जम्मस्स पारगा न-जन्मस्य पारगान जन्मको पार नहीं कर सकते हैं ॥२३॥ -- अन्वयार्थः- अर्थ और व्याख्या पहले के समान ही है। विशेष यही है की वे वादी जन्म अर्थात् उत्पत्ति के पारगामी नहीं होते वे एक जन्म से दूसरे जन्म को प्राप्त होते रहते हैं। मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकते । कहाभी हैं-" वजन्तो जन्मनो जन्म" इत्यादि। ___ " एक जन्म से दूसरे जन्म को प्राप्त करते हुए मुक्ति नहीं पाते हैं" ॥२३।। तेसो भने पापामा हाता नथी. 'जे तेउ एवं थाइणो-ये ते तु एवं वादिनः' देसी मारीते भिथ्यात्वनी प्र३५९। ४२वावा छे तमा 'जम्मस्स पारगा न-जन्मस्य पारगा न' भने पा२ री शता नथी. ॥२॥ -मन्ययाथઆ ગાથાને અર્થ અને વ્યાખ્યા પૂર્વવત્ જ સમજી અહીં ચટલું જ વિશેષ કથન ગ્રહણ કરવું જોઈએ કે તે અન્યતીથિ કે જન્મ અથવા ઉત્પત્તિના પારગામી થતા નથી. તેઓ એક પછી એક જન્મની પ્રાપ્તિ જ કર્યા કરે છે. તેઓ મોક્ષની પ્રાપ્તિ કરી Adi नथी. ४{ ५५५ छे छे “व्रजन्तो जन्मनो जन्म” त्याह- તેઓ એક જન્મ પછી બીજા જન્મની પ્રાપ્તિ કરતાજ રહે છે. તેઓ જન્મ મરણના ફેરામાંથી છુટકાર પામીને મેક્ષધામની પ્રાપ્તિ કરી શક્તા નથી . ૨૩ છે For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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