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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १ चार्वाकादिबौद्धान्तवादोनामकलवादित्वम् २४५ अन्वयार्थः पूर्ववदेव । व्याख्या निगदसिद्धा, नवरं-ते वादिनः गर्भस्यगागमनस्य पारगा न भवन्ति गर्भाद् गर्भान्तरपरिभ्रमणं तेषां न नश्यति।।२२।। पुनरप्याह-'तेणा वि संधि' इत्यादि । मूलम्तेणा वि संधि णचाणं न ते धम्मविओ जणा । जे ते उ वाइणो एवं न ते जम्मस्स पारगो ॥२३॥ छायातेनापि संधि ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः । ये ते तु वादिन एवं न ते जन्मनः पारगाः ॥२३॥ ज्ञाता 'न-न नहीं हैं 'जे-ये' जो 'ते उ-ते तु' वे एवं-एवम्' ऐसे 'वाइणो-चादिनः' वादी हैं 'ते-ते' वे 'नगम्भस्स पारगा-गर्भस्य पारणाः न' गर्भ को पार नहीं कर सकते हैं ॥२२॥ -अन्वयार्थःइस गाथा का अर्थ भी पूर्ववत् ही है। व्याख्या भी स्पष्ट है। विशेष इतना समझना कि-वे वादी गर्भ के पारगामी नहीं होते अर्थात् उनका एक गर्भ से दुसरे गर्भ मे परिभ्रमण करना बंद नहीं होता है ॥२२॥ फिर कहते हैं-" ते णावि" इत्यादि । शब्दार्थ-ते-ते वे सधिं-सन्धिम्' सन्धिको ‘णावि णच्चा नापि शात्वा' नहीं जानकर क्रिया प्रवृत्त होते हैं 'ते जणा धम्मविओ न-ते जनाः धर्मविदः न वे लोग विदः' भने ना२॥ 'न-न' नथी. 'जे-ये यो 'एय-एवम्' मेरीत ना 'वाइणोपादिनः' पाही। छे. 'तेउ-ते तु तेसो 'न गम्भस्स पारगा-गर्भस्य पारगाः न' ગર્ભને પાર કરી શક્તા નથી. ૨૨ -अन्वयाथ આ ગાથાને અર્થ પણ પૂર્વવત્ જ છે. વ્યાખ્યા પણ સ્પષ્ટ છે. અહીં એટલું જ વિશેષ કથન સમજવાનું છે કે તે અન્યતીર્થિકે ગર્ભના પારગામી થતા નથી. એટલે કે તેમનું એક ગર્ભમાંથી બીજા ગર્ભમાં પરિભ્રમણ કરવાનું બંધ પડતું નથી. ગાથા રર पणी सूत्र॥२ ४ छ -"तेणावि" त्याह शाहाय---'ते-ते तेयो 'सधि-सन्धिम्' सधीन 'णाविणच्चा-नापि ज्ञात्त्या Mया विना लियामा प्रवृत्ति ४२ छ, 'ते जणा धम्मविओ न-ते जनाः धर्मविदः न' For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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