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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ तात्पर्यदीपिकासमेता- [३ मुक्तिखण्डेअत्यन्तं प्रीतवानस्मि तव तद्वद मेऽनघ ॥ इत्युक्तः शंकरेणासौ विष्णुर्विश्वजगन्मयः ॥ १९॥ प्रदक्षिणत्रयं कृत्वा दण्डवत्पृथिवीतले ॥ प्रणम्य बहुशः श्रीमान्भक्त्या परवशो हरिः॥२०॥ साम्बं शैवं परानन्दसमुद्रं पुरुषोत्तमः ॥ नेत्राभ्यामागलं पीत्वा कंचित्कालं दिजर्षभाः॥२१॥ ॥ १९ ॥ २० ॥ २१ ॥ प्रमत्तः शंकरादन्यं न किंचिदेद सुव्रताः ॥ ततः प्रबुद्धो भगवान्प्रसन्नः कमलेक्षणः॥२२॥ प्रमत्तः प्रकर्षेण हृष्टः । ततः प्रबुद्ध इति । हर्षपारवश्यं मुक्त्वा प्रकृतिस्थः ॥ २२॥ अपृच्छद्देवमीशानं कृपामूर्ति जगत्पतिम् ॥ विष्णुरुवाच भगवन्भूतभव्यज्ञ भवानीसख शंकर ॥ २३ ॥ मुक्तिं मुक्तरुपायं च मोचकं मोचकप्रदम् ॥ तथैवान्यच्च मे ब्रूहि श्रद्दधानस्य शंकर ॥२४॥ प्रष्टव्यपरमकाष्ठामसौ विष्णुः पृच्छति-भगवनिति ॥ २३ ॥ २४ ॥ सूत उवाच एवं पृष्टो महादेवो विष्णुना विश्वयोनिना ॥ विलोक्य देवीमाहादादम्बिकामखिलेश्वरीम् ॥२५॥ प्रहस्य किंचिद्भगवान्भवानीसहितो हरः॥ प्राह सर्वामरेशानो विष्णवे मुनिसत्तमाः॥२६॥ ईश्वर उवाच १घ प्रवृत्त्यप। For Private And Personal Use Only
SR No.020777
Book TitleSsut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahadev Chimnaji Aapte
PublisherAnand Ashram
Publication Year1893
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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