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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ तात्पर्यदीपिकासमेता- [२ज्ञानयोगखण्डेजयाहङ्कारशत्रुघ्र जय मायाविषापह ॥ जयं वेदान्तसंवेद्य जय वाचामगोचर ॥ ७३ ॥ जय रागहरश्रेष्ठ जय देषहराग्रज ॥ जय साम्ब सदाचार जय सर्वसमाद्भुत ॥ ७४ ॥ जय ब्रह्मादिभिः पूज्य जय विष्णो परामृत ॥ जय विद्यामहेशान जय विद्यार्पदानिशम् ॥ ७५ ॥ जय सर्वाङ्गसंपूर्ण नागाभरणभूषित ॥ जय ब्रह्मविदां प्राप्य जय भोगापवर्गद ॥ ७६ ॥ जय कामहर प्राज्ञ जय कारुण्यविग्रह ॥ जय भस्म महादेव जय भस्मावगुण्ठित ॥ ७७ ॥ जय भस्मरतानां तु पाशभङ्गपरायण॥ जय हृत्पङ्कजे नियं यतिभिः पूज्यविग्रह ॥ ७८ ॥ सूत उवाचइति स्तुत्वा महादेवं प्रणिपय बृहस्पतिः ॥ कृतार्थः क्लेशनिर्मुक्तो भक्त्या परवशोऽभवत् ॥७९॥ य इदं पठते नित्यं संध्ययोरुभयोरपि । भक्तिपारंगतो भूत्वा परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ ८॥ गङ्गाप्रवाहवत्तस्य वाग्विभूतिर्विजृम्भते ॥ बृहस्पतिसमो बुद्धया गुरुभक्त्या मया समः ॥८॥ पुत्रार्थी लभते पुत्रं कन्यार्थी कन्यकामियात् ॥ ब्रह्मवर्चसकामस्तु तदाप्नोति न संशयः ॥ ८२॥ तस्माद्भवद्भिर्मुनयः संध्ययोरुभयोरपि ॥ जप्यं स्तोत्रमिदं पुण्यं देवदेवस्य भक्तितः ॥ ८३॥ १ ङ. 'य विज्ञानसं" । २ . प्रकाशन । ३ ङ. भक्तिदम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020777
Book TitleSsut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahadev Chimnaji Aapte
PublisherAnand Ashram
Publication Year1893
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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