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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * सोय कयत्थो पुरिसो लग्गिजा जस्स करयले बाला / रंभागम्भसुकोमलबाहुलया हंसगइगमणा // 175 // धनो हमितिएणं गहिया * | अंकम्मि सा मए सुतणू / अक्गृहिया य गाढं जं न मए, वंचिओ तं तु // 176 // पुणरचि हविज जैचा हथिभए भूमिनिवडिया तह सा / चित्तूण जेण सहसा अवयासेज्जा तयं गाढं // 177 // एमाइ बहुविगप्पं विचिंतयंतस्स तग्गयमणस्स / निदाए समं राई खयं | गया, उग्गओ घरो॥१७८॥ अह सो पहायसमए विहिणा वंदित्तु जिणवरं पढमं / चलिओ कन्ना केलहरवियाणणत्थं पुराभिमुहो। // 179 // पत्तो य पुरं पिच्छइ जपरहियं सुमसयलधवलहरं / पुरलच्छिविप्पमुकं उबसिय अडविपडिरूवं // 180 // अह पिच्छिऊण तं सो विम्हियहियओ मणेण चिंतेइ / कचो हंत ! अकंडे पुरमेयं उव्वसं जायं // 18 // किं होज इंदयालं अहवा सचं हि उव्वसं एयं / किं कुविएप सुरेणं अवहरियमिमाओ ठाणाओ॥१८२॥ अहवा भयाओ कस्सवि नट्ठो लोगो इमाओ नयराओ। एवं विचिंतयंतो चित्तगई पविसई जाव // 183 // तावय सेमुहमितो एगो पुरिसो पुलोइओ तेण / उवयारपुव्वयं सो महुरगिराए इमं भपिओ ||184 // तिसृभिः कुलकम् // भदमुह / किंनिमित्तं उबैसिय पुरखरं इमं सहसा / ततो य तेण भणिय साहिअंत निसामेहि // 185 / / ताव सुपसिद्धमेयं विजापबत्तिगविओ सूरो। पालइ पुरवरयेयं कणगपहो खयररायति // 186 // जलणप्पहस्स जेस्स भाउणो | पिउविदिन्नरजपयं / उद्दालिऊण जेणिह अहिट्ठियं अप्पणा चेव // 187 // नीसारिओ य भाया जिट्ठो ससुरस्स सो गओ नयरे। एसोवि इमम्मि पुरे अच्छइ रज अणुहवंतो // 188 // ससुरेण भाणुगइणा किल विजा रोहिणी उ से दिना / सो साहिउँ पयत्तो सिटुं कृतार्थः कृतकार्यः / 1 इत्तिएर्ण एतावता / 3 जत्ता वात्रा / 4 अवासेम्जा-सिष्येत / कुलगृहम् पितृहम् / ( उज्वसिय उदुषितम् . उम्बसंIsleil उद्सम् नरनिवासरहितम् / 7 प्रतिरूपं सदृशम् / 8 अकाण्डे अकाले / 9 संमुखमायन्-आगच्छन् / 1. कथ्यमानम् / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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