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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरिऑ। // 42 // आगारसवरं भणइ / एवं कर 165 // तं पुण गच्छसु निवि दिहा ICI | संठियं पुण समप्पियं तस्स ताण पच्छन / अह सा सज्झसवेविरदेहा गंतुं पयवृत्ति // 159 // वलियग्गीवं तीए अइगुरुअणुरायपिसु- पञ्चमो | णदिट्ठीए। निज्झाइओ तहा सो जह जाओ कुसुमसरविसओ // 160 // अह सा सहियणसहिया कमेण नियपुरवरं पविट्ठति / चित्त- परिच्छेओ। | गईवि य तीए जोव्यषरूवेहिं हयहियओं // 161 // चित्तलिहिउव्व जाओ खणतरं विगयअनवावारो / तं दटुं दमघोसो सविणयमेवं | * समुल्लवइ // 162 / / युग्मम् / / अत्थ पिरिसिहरमणुसरइ दिणयरो एस वियलियपयावो। ता गम्मउ नियठाणे कुमार! किमिणा विल | बेण // 163 // तव्वयणं सोऊणं काउं आगारसवरं भणइ / एवं करेमु नवरं कारणमेयं विलंबस्स // 164 // मह हत्थाओ पडिय सदा-1 | रयणं तु एत्थ कत्थवि य / तं गैविसिउँ पभाए झडत्ति अहमागमिस्सामि // 165 / / तं पुण गच्छसु सिग्धं कहेज जलणप्पहस्स * वृत्त / ईसि हसिऊण तओ दमघोसो एवमुल्लवइ // 166 / / पच्चक्खम्मिवि दिह्र कुमार! किं एत्थ वंकमणिएहिं / किं नवि दिवा | कन्ना तुह हत्था तं पगिण्हंती // 167 / / ता कवडं मोत्तूणं जहट्ठियं चेव साहिउँ जुत्तं / कन्नाए मूलसुद्धिं विलभिउ आगमिस्सामि || // 168 // एवं च तेण भणिओ चित्तगई विहसिऊण वञ्जरइ / सम्मं वियाणियं ते मणोग मज्झ दमघोस! // 169 // अह सो |कयप्पणामो उप्पइओ पाविओ नियं ठाणं / चित्तगईवि पविट्ठो जुगाइजिणमंदिरे रम्मे // 170 // वंदियजिणिंदबिंबो जिणउग्गह| वञ्जियम्मि एगते। गंतूणं उवविट्ठो समागया ताव रयणीवि // 171 // अह चिंतिउं पयत्तो किं मन्ने तीइ मज्झ हत्थाओ / गहिउँ मुद्दारयणं किंवा मह ढोइयं निययं // 172 // कह णु मए नायव्वं तीए कुलं कहव सा वरेयव्वा / जइ सा हविज महिला | // 42 // | हविज तोजीवियं सहलं // 173 / / तारिसरूवजुयाए समय इह विसयसेवणं जुत्तं / तदभावे विसयासा विडंबणा मज्झ पडिहाइ॥१७४॥ 1 तेभ्यः / 3 पिशुनं-सूचकम् / 3 निण्यातः-दमः। 4 आकारसंवर:-आकृतिगोपनम् / 5 गवेषयित्वा=अन्विष्य। 6 तां-मुद्रिकाम् / . उपलभ्य=विज्ञाय / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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