________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी पञ्चमो चरि। // 40 // **48**48**882*489* * यरिया दासचेडीहि // 105 / / पत्ता उजाणम्मी तत्थ मए पूइओ कुणुमबाणो / नियगिहमागच्छंती विमोहिया झत्ति केणावि॥१०६॥ | मोकूण परियणं तं पलायमाणी समागया एत्थ / अडवीए ताव मए दिट्ठो कणगप्पहो सहसा / / 107 // पावेण तेण भणियं इच्छ ममं | ताहि गाढकुद्धाए / अकोसिओ स बहुहा निठुरवयणेहिं मे ताहे // 108 // उंग्गीरिऊण खग्गं मणिया हं तेण इच्छसु ममंति। अह | नपि, तो ते सीसं छिंदामि इमेण खग्गेण // 109 // एवं च तेण भणिया पलायमाणी भएण कंपंती। पत्ता तुम्ह समीवे रक्ख मम ताओ पावाओ॥११०॥ एवं भणमाणिं तं सहसा आगम्म गिहिउं हत्थे / उप्पइओ कणगपहो तमालदलसामलं गयणं // 11 // हा रक्ख रक्ख माउय! हा वल्लह ! कुणसु मह परितत्ति / एमाइ विलवमाणिं हीरति दछु नियमगिणिं // 112 // नियकुलकलंककारय ! कत्थ ममं जासि दिहिपहपङिओ। 'पुरिसो भव एस तुहं सीसच्छेयं करेमित्ति // 113 / / एमाइ वाहरंतो चित्तगई गहि| यनिसियकरवालो। अणुमग्गेणुप्पइओ भगिणीए विमोयणटाए // 114 // तिसृभिः कुलकम् / / अह तं विमोहयतो कणगपहो आगओ | निययनयरे / चिचयईवि खपरो अणुमग्गं तस्स संपत्तो // 115 // ततो विमोहणीए विजाए मोहिऊण चित्तगई / सुरनंदणे पविट्ठो कणमपहो निययनयरम्मि // 116 // अह सो मोहियचित्तो चिचगई तत्थ बाहिरुजाणे / वीसरियभगिणिहरणो अवयरिओ कोउहल्लेण // 117 // दटुंजणसंदोहं उसभजिर्णिदस्स पवरभवणम्मि / जत्तासमए मिलियं विचित्तनेवत्वसच्छायं // 118 // पविसिय जिणिंदभवणं बंदिय भत्तीइ पढमजिणनाहं / उवविट्ठो चित्तगई विजाहरनियरमज्झम्मि // 119 // पत्तो खणंतराओ जलणप्पहपेसिओ नरो आक्रोशितः / 2 उगीर्य-उत्पाव्य / 3 उत्पतितः / 4 परित्तत्ती-परित्रातिः परित्राणम् / 5 हीरती-हिवमाणा / 6 अनुमार्गेणोत्पतितः अनुगत इत्यर्थः / | . भक्तीर्णः / // 40 // ** For Private and Personal Use Only