________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरीचरिअं | पञ्चमो परिच्छेओ। // 39 // नाम मुणिवरो एवं / सिट्ठम्मि चित्तगइणो तत्तो ते दोवि हरिसेण // 79 // ति पइक्खिणिउ सम्म हरिसवसुटुंतबहलरोमंचा। पण| मियकेवलिचलणा विणिविट्ठा धरणिवट्ठम्मि // 80 // युग्मम् // निजियसनीरजीमूयघोसगंभीरभारईए तओ / तीइ परिसाइ भयवं | पारद्धो देसणं काउं // 8 // अविय / गयकलहकाचवला लच्छी मणुयाणमाउर्यमणिचं / जोव्वणमवि मणुयाणं सहसत्ति जरा अभिद्दवइ // 82 // रोगसय|पीडिय तंपि जोवणं जाइ जीवलोगम्मि / इट्ठवियोगाऽणिदुप्पओगदुक्खेहि केसिंचि // 83 // अइपरिमियम्मि चवले रोगजरासोग| वाहिपउरम्मि / जीवाण जोव्वणे एरिसम्मि को नाम पडिबंधो ? // 84 // विसया कुगइनिमित्तं उवभुत्ता तुच्छगा तहा तेवि / विरसा सह अवसाणे तेसु तओ को व पडिबंधो ? // 45 // इय संसारे सारं जं किर पडिहासए विधुजासा / तंपि हु दुहसयहेउत्ति | जाणिउं कुणह जिणधम्मं // 86 // जं दुलहा सामग्गी एसा तुम्भेहिं भवसमुद्दम्मि / पत्ता अपत्तपुव्वा ता मा तं निष्फलं नेह // 87 / / | एसा हु पुणो दुलहा जाईलक्खोहसंकुलभवम्मि / हिंडताण ताणं न य अचं जिणमेयं मोत्तुं // 88 // तम्हा जिणेहिं भणियं दिक्ख | घेत्तूण संजमं काउं / उशिय तो संसारं पावह सिद्धीए" पवरसुहं // 89 // एवं मुणिणा धम्मम्मि सौहिए केवि तत्थ पथ्वइया / / जाया उवासया तह अन्ने सम्म पंवन्नत्ति // 10 // // 39 // 1 त्रिः / 2 प्रदक्षिणीकृत्य / 3 धरणिपृष्ठे / 4 आउय आयुष्कम् / 5 प्रकर्षेण योगः प्रयोगः / 6 सइ-सदा / 7 विपर्यासातम्भ्रमात् / 8 त्राणंत्र शरणम् / 9 मत दर्शनम् / 1. प्राप्नुत / 11 सिद्धि मुक्तिः / 12 साहिए कथिते / 13 उपासकाः / 14 सम्यक्त्वम् / 15 प्रपन्ना इति / Fer Private and Personal Use Only