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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी- चरि। परिच्छेओ। // 38 // एयागिईए ता इंकारेमि जिणालयं रम्मं // 48 // मणिकट्टिमम्मि तत्तो आलिहिउँ उज्जओ जया राया / ताव य झत्ति विलीणो पवणहओ जलहरो सहो // 49 // दगुण तं विलीणं खणेण राया विचिंतए एवं / एवंविहा नराणं लच्छीओ चवलरूवाओ॥५०॥ जह एसो अब्भलवो खणेण दिवो पुणो पणट्ठोति / तह सब्वेवि पयत्था खणमित्ताणदसंजणणा // 51 // रूवं च जीवियं जोव्वणं च सव्वेचि बंधुसंबंधा / एवमणिचा औद्यो! धिरत्यु संसारवासस्स // 52 // पञ्चक्खं हि अणिञ्च नाऊणविजं थिरंव मनति / विसयाऽऽसत्ता सत्ता, एवं अविवेयसामत्थं // 53 // नाऊणवि जिणवयणं आरंभपरिग्गहेसु वटुंति / कामासत्ता जं पुण अहो ! महामोहमाहप्पं // 54 // तालं मम रजेण संसारनिवासहेउभूएण / जाणियजिणिंदवयणस्स हंदि ! गुरुदुक्खमूलेण // 55 // ता सावजं वज्जिय पव्वजाउजम करेमि * लहूं। किं मह इमिणा दुग्गइनिबंधणासाररजेण ? // 56 // अनं च मज्झ बसे रज दाऊण निययषुत्ताण / बहवे कयसामना रायाणो | पाविया सुगई // 57 // तव्वंसपसूएणं मएवि कायन्वयं इमं तम्हा / इय चिंतिऊण राया संसँइ संनिहियखयराण // 58 // एत्यंतरे सुघोसो चउनाणी चारणो मुणी तत्थ / विहरतो संपत्तो भवियाण विबोहणड्डाए // 59 // राया पहंजणो अह सुयस्स जलणप्पहस्स अह रजं / दाऊण तहा कणगप्पहस्स पन्नत्तिवरविजं // 60 // तत्तो य विणिक्खंतो सुघोससाहुस्स पायमूलम्मि / अवहाय रायलच्छि पहंजणो खयररायचि // 6 // जलणप्पहोवि भुंजइ रायसिरिं खयरनियरपरिकियो / सयलोरोहपहाणाइ चित्तलेहाइ समयंति // 2 // | कणगप्पहोवि साहिय विजं पन्नत्तिनामियं विहिणा / विजापभावसंजायगरुयसामथवित्थारो // 63 // उज्झिय नियवंसकम अणवि एतदाकृत्या। 2 उद्यतः / 3 खेदार्थेऽत्राव्यवमिदम् / 4 धिगस्तु / 5 सत्त्वाः प्राणिमः / / जाणिय-शातम् / 7 प्रवज्या दीक्षा / 8 शंपति कथ|| यति / 9 अपहाय-त्यक्त्वा / 10 नियरो=निकरः-समूहः / 11 साधयित्वा / 12 अनवेश्य / // 38 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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