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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरीचरिअं। पञ्चमो परिच्छेओ। // 37 // एत्थेव अत्थि सेले बहुविजाहरपुरोहपरिकलिए / सुविभत्ततियचउकं नाणाउजाणरमणीयं // 18 // सुविसालसालकलियं सकंदणपु- | रवरस्स सारिच्छं / उत्तरसेढीए पुरं पवरं सुरनंदणं नाम // 19 // युग्मम् / / साहीणसयलविजो विजाहरनियरपणयपयकमलो / कमल| दलतुल्लनयणो नयणमणाणंदणो मेरो // 20 // सरोव्व निहयतेयस्सितेयनिवहो अखंडियपयावो / दप्पिट्ठवइरिवारणनिवारणे सीहपोय| समो॥२१॥ विजाहराण राया सुपसिद्धो चेव सव्वखयराण / पसरंतविमलकित्ती आसी हरिचंदनामोत्ति / / 22 / / तिसृभिः कुलकम् // | सरसिरुहसरिसवयणा नीलुप्पलदलविसालवरनयणा / कमलोयररुइदेहा रयणवई नाम से महिला // 23 // सयलोरोहपहाणाए तीए पाणप्पियाए देवीए / समयं तिवग्गसारं विसयसुहं अणुहवंतस्स // 24 // देवकुमारसरिच्छो अह तीए दारओ समुप्पनो। उचियसमए | य तेहिं पहंजणो नाम से विहियं // 25 // धूया य बंधुसुंदरिनामा असमाणरूवलावन्ना / दोनिवि ताई कमसो पत्ताई जोव्वणं पढमं| | // 26 // अह अन्नया कयाइवि अवरोप्परनेहगरुयभावाणं / एगंतम्मि ठियाणं उल्लावो तेसिं संजाओ॥२७॥ भणियं पहंजणेणं पढम Mell तुह होइ किंचि जमवच्चं / धूया वा तणओ वा तं मह तणयस्स दायचं // 28 // l अविय / तुज्झ महं वा जे होज किंपि इह पढमगं तु डिंभरुयं / अवरोप्परसंबंधो ताणं अम्हेहिं कायद्यो॥२९॥ ता बंधुसुंदरीए | तहत्ति बहु मत्रियं तयं वयणं / गरुयसहोयरसब्भावनेहअक्खित्तचित्ताए // 30 // एत्तो य अत्थिनयरं वेयड्डे उत्तराए सेढीए / * | संबोउयतरुवणसंडमंडियं चमरचंचति // 31 // तत्थ य खयरनरीसो भाणुगई नाम अतुल्लसामत्थो। निजियअणंगरूवो कामिणिजणमाणसाणंदो॥३२॥ हरिचंदखयरपवरेण नियसुया बंधुसुंदरी तस्स / दिना वरपीईए विवाहिआ सायरं तेण // 33 / / तीइ सुतणूह समय 1 त्रिकम् मार्गत्रयसंयोगः / 2 शूरः / 3 पोतः चालकः / 4 रुचिःकान्तिः / 5 अवच्च-अपत्यम् / 6 मतम् / 7 सव्वोउया सर्व काः / 8 नरीखो-नरेशः। // 37 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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