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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir च्छओ एसो॥२०४॥ भो सुप्पइ ! एवं सोमलयावयणसवणओ तइया / जाय मणयं मह माणसस्स संस्थतणं तत्तो // 205 // एवं विचिंतियं मे केवलिणा जेण एरिसं भणिय / पुष्वभवनेहबद्धा होही मजत्ति, ता एयं // 206 // संभवइ नूण अम्हं अवरोप्परदसणाओ | अइगरुओ / अणुराओ जाओ जं सुम्मइ लोयप्पवाओ य॥२०७|| जाइसराई मन्ने इमाई नयणाई सयललोयस्स / वियसंति पिये दिढे अबो! मैउलिंति वेसम्मि // 208 // ता भवियध्वं इमिणा नवरं अइदुग्घडम्ह पडिहाइ / जं सा रायसुएणं वरिया कह मज्ज होहित्ति? 209 / / एवं विचिंतिऊणं तंबोलपयाणपुव्वयं भर्णिया / जं किंचि एत्थ होही दीसिस्सइ त सयं अंबे ! // 210 // मणिय सोमलयाए |एवं एयंति नत्थि संदेहो / तत्तो विहियपणामा उडियसेंढाणमणुपत्ता // 211 // अह भणइ भाणुवेगो पुचि दिवस्स तस्स सुमिणस्स / लेसेण कोवि अत्थोऽवधारिओ ताव तं सुणसु // 212 / / एसा हु कषगमाला माला होहित्ति, तीए जो रागो। तग्गबणं तं आणसु | वरणं पुण तीए अप्पत्ती // 213 // एत्तियमेत्तो अत्थो परिप्फुडो ताव जाणिओ हु मए / सेसंपि हु अव्वत्तं वियाणियं किंचि तं सुणसु Jai // 214 // कोवि उवाएण इमं अप्पिस्सइ तुज्झ सा पुणो कहवि / भट्ठा तुह हत्थाओ पाविस्सइ आवई गैरई // 215 // ततो रक्खिय कोवि हु"ढोइस्सइ तुझ तेण पजंतो। सुविणस्स सुंदरो इय विणिच्छिओ सुविणसम्भावो // 216 // तं सोई" मए भणिय सम्म हि विणिच्छियं तुमे सुयणु ! / घडइ जओ एसत्थो नवरं अइदुग्घडो लाहो // 217 / / तो भणइ भाणुवेगो वत्थु न त अस्थि एत्थ 1 मनाक् / 3 स्वस्थत्वम् / 3 अवरोप्पर परस्परम् / 4 आतिं पूर्वजन्म स्मरन्तीति जातिस्मराणि / 5 मुकुलयन्ति / / द्वेष्ये 'दृष्टे' इत्यत्रापि योज्यम् / 7 अतिदुर्घटम् / 8 अम्ह-अम / 9 भणिता, सोमलताया विशेषणमिदम् / 10 स्वस्थानमनुप्राप्ता / " भप्राप्तिः / 11 अग्यकम् अस्फुटम् / 13 गई गुर्वी / 14 ढोकिष्यते उपस्थापयिष्यति / 15 श्रुत्वा / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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