________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चउत्थो परिच्छेओ। चरिअं। // 34 // यव्यंति / एवं हि कए कमसो होही इद्रुत्थसंपत्ती // 189 // इय देवयाए वयणं सोऊण चित्तवेग ! अम्हाणं / संजातो गुरुतोसो तत्तो |य मए इमं भणियं // 19 // मणवंछियवत्थुम्मी मा कीरउ पुत्ति ! कावि आसंका। कवडेणवि तेण तुमं मनसु नियजणयवयणंति ||191 / / एवं च देवयाए वयणं अन्नस्स नेव कहियच्वं / मा विनायसरूवो विरूवमायरइ सो राया // 192 // एयम्मि कए पयडे | लोयपंवायाउ नायपरमत्थो / रायाऽवस्सं तुह वल्लहस्स आयरइ असुहंति // 193 // तो भणइ कणगमाला एवं एयंति नस्थि संदेहो। | ता अम्बे ! पत्थुयस्थे उऑम किं एत्थ बहुएण 1 // 19 // तत्तो य मए गंतुं सिटुं एयं तु चित्तमालाए। भणिया बहुप्पगारं तुह धूया | भणइ एवं तु // 195 // जे किंचि भणइ ताओ जंचिय इह बहुमयं तु अम्बाए / जं चेव य सगुणतरं मएवि तं व कायध्वं // 196 // | जह अब्भुदओ तायस्स होइ, जह होइ नावया कयापि / तह चेव य कायव्वं मएवि, किं एत्थ अमेण // 197 // तत्तो य चित्तमाला तव्वयणं कहइ निययदेइयस्स / तं सोउं अमियगई हरिसियवयणो इमं भणह // 198 // सुंदरमणुट्ठियं हंदि! मज्झ धूयाए जणयोंताए / दक्खिन्नवयणविनाणगरिसो दंसिओ एवं // 199 // ततो पभायसमए रायामचेहिं वरणयं तीसे / महया विच्छडेणं विहियं | कयजणयआणंदं॥२०॥ ___ एवं च ठिए। तुह मणनिन्बुइहेउं तीए वयणेण आगया अहया कहणत्थं पत्थुयवत्थुवित्थरस्सेत्थ तुह पासे // 201 // तामा सुंदर! वरणयसवणाओ दुम्मणो तुम होसुज देवयाए वयणं अलियं न य हवइ एयं तु // 202 // एवं च कणगमाला भाणइ न नाह! तपमोत्तूण। अन्नस्स करो लग्गइ मह हत्थे इत्थ जम्मम्मि // 203 / / देवयवयणं जइ होइ सञ्चयं ता धरेमि नियपाणा / तदभावे पुण सरणं मरणं मह नि 1 श्यर्थसंप्राप्तिः / 2 प्रबादः परम्परागतवाक्यम् / 3 मातः / 4 उद्यच्छ-उद्यम कुरुष्व / 5 दयितः पतिः। 6 भत्ताभक्ता। 7 पगरिसो-प्रकर्षः / 8 भाणयतिमद्वारा कथयति / त्वाम् / / 34 // For Private and Personal Use Only