________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PAT82896446 | पाणवल्लहय! // 173 // मन्ने न किंचि लद्धं हयविहिणा मरणकारणं अन्नं / मह तेण कारणेणं तुमए सह दंसणं विहियं // 17 // | वणदेवयाओ! निसुणह तुम्ह पसायाओ अन्नजम्मेवि / सो खणदिवो लोगो दइओ मह होज, नन्नोति // 175 / / एवं भणिउं तीए मुको अप्पा अहोमहो झत्ति / एत्थंतरम्मि गयणे समुट्ठिया एरिसा वाया // 176 // मा मा साहसमेयं आयर भद्दे ! सैमुच्छुगा होउं / | सो चेव तुज्झ भत्ता होही नणु चित्तवेगोत्ति // 177 / / तत्थेव लग्गदिवसे पाणिग्गहणं भविस्सई तेणं / अह सुंदरि! एत्थत्थे मा | किंचिवि कुण विसायति॥१७८।। युग्मम् / / वयणाणतरमेव हि तुट्टो से पासओ, तओ अहयं तव्वयणगलियसज्झससत्थसरीरा गया | पासे // 179 // तत्तो सलज्जवयणा भणिया य मए न पुत्ति ! तुह जुत्तं / एरिसमायरिउं जणणिजणगमाईणदुहजणयं // 180 // तत्तो *य तीइ भणिय अम्बे ! अम्हारिसाण किं अन्नं / एवं हि गैए काउं जुत्तं मरणं पमोत्तूणं // 18 // जओ। वरि मरणं मा विरहो विरहो अइदूसहोऽम्ह पडिहाइ / वरि एक चिय मरणं जेण सेमपंति दुक्खाई // 182 // तत्तो य मए | तीसे कहिओ सबोवि पुव्ववुत्ततो / भणिया य पुत्ति ! संपइ किं तुह पडिहासए काउं?॥१८३॥ अह तीए वञ्जरियं लज मोत्तु भणामि एवं तु / नवि मज्झ करे लग्गइ अन्नो पुरिसो इहंजम्मे // 184 // हसिऊण मए भणियं देवयवयणाउ सिद्धमेयंति / किंतु कह तुज्ज्ञ * जणओ छुट्टिस्सइ गंधवाहणओ // 185 / / एत्थंतरम्मि पुणरवि गयणे वाया समुट्ठिया एसा / मा! कुणह बहुविगप्पे मह वयणं ताव | निसुणेह // 186 // गंतूर्ण सोमलया साहउ जणयस्स एरिसं वयणं / भणिया बहुप्पगारं भणइ तओ कणगमालेवं // 187 // ज चेव कुणइ ताओ तं चेव मज्झ बहुमयं सत्वं / जइ होइ सुंदरं इह तायस्सवि कीरइ तयंति // 188 // तत्तो अविगप्पं से वरणमाई पडिच्छि 1 नान्य इति / 2 समुत्सुका अत्युत्कण्ठिता / 3 पार्श्व-समीपे / 4 गते प्राप्ते / 5 समाप्यन्ते-पूर्णीभवन्ति / 6 देवतावचनात् / 7 बहुमतम् / For Private and Personal Use Only