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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरीचरि। चउत्थो परिच्छेओ। // 33 // | सुम्मइ जणम्मि पयड कट्ठो खलु भिच्चभावोत्ति // 159 // जइवि हु विजियाणंगो रूवेणं जइवि संपयाकलिओ। जइवि हु उत्तमवंसो सेक्खा सकंदणो जइवि // 160 // तहवि न भावइ अन्नो पुरिसो तं हिययवल्लहं मोत्तुं / जइ एस निच्छओ हियय ! तुज्झ ता किं विलंबेण? // 161 // युग्मम् // एसो सो पत्थावो अइदुलहो पाविओत्ति कलिऊणं / उज्जम विचिंतियत्थे होउ अविग्घेण संपत्ती॥ | // 162 // एवं हि कए तायस्स देइ दोसं न किंपि रायावि। दूसहविओयदुक्खस्स होइ एवं च वोच्छेओ॥१६३।। एमाइबहुविगप्पा भणिऊणं चित्तवेग! सा वाला / कयमरणज्झवसाया आरूढा अह तमालम्मि // 164 // दहण साहसं तीए नवरि देहं पकंपियं मझं। | न वहइ वाया कहवि हुथेक्काओ सव्वसंधीओ॥१६५|| तत्तो य कणगमाला आरुहिऊण तमालसाहाए / बंधिय निउत्तरीयं बंधइ नियकंधराभोए // 166 // अह पणिउं पयत्ता अम्मे ! जंकिंचि बालभावाओ। पंभिई किलेसिया तं तं खमियई महं सवं // 167 / / | ताय ! तुमंपि हु मह खमसु संपयं पणयपरवसाइ मए / पुदि किलेसिओज परलोयं पत्थिया अहयं // 168 // जणणीसमहियनेहे ! | सोमलए ! खम किलेसिया जं सि / सुसिणिद्धसहीसंदोह ! खमसुजं किंचि अवरद्धं // 169 / / खणमित्तदिह ! वल्लह ! हिययभंत|रपविट्ठ! निसुणेसु / पत्थेमि किंचि सामिय ! पाणच्चायं करेमाणी // 170 / / तुह संगमरहियाए एसो जम्मो हु ताव बोलीणो। | अन्नभवे पुण सामिय! तं चिय मह वल्लहो हुआ // 171 // अन्न भणामि सामिय ! जइवि हु अइनिठुरं इमं वयणं / तहवि हु तुह आषयावारणथमेसो म्ह निबंधो // 172 // नीसर मह हिययाओ रुद्धे कंठम्मि पासएणहवा। सकेसि न नीसरिउं सामिय! मह 1 साक्षात् / 2 सक्रन्दनः इन्द्रः / 3 रोचते। 4 तस्याः / 5 थक्का=स्थिता / 6 निजकन्धराभोगे-स्वीयग्रीवादेशे। 7 अम्मा-माता / 8 पभिई-प्रभृति / 9 आवया आपत् / 10 निबंन्धः आप्रहः।" पाशकेन-रज्ज्वा / / 33 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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