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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * 8 | दिवा // 144 // किंकिंपि चिंतयंती गलतधुलंसुसित्तगंडयला / अणहंतमणसमीहियगुरुदुक्खा कणगमालत्ति // 145 / / तत्तो विचि| तियं मे किं मन्ने नियगिह पमोत्तृण / एगागिणी हु पसा समागया एत्थ उजाणे // 146 / / युग्मम् / ता एई अदिट्ठा पच्छभठिया || *निएमि जं कुणति / विनायसरूवत्था एसा नियजणयवयणस्स // 147 // एवं विचिंतिऊणं तुहिक्का कयलिथंभअंतरिया। खणमेगं |जा चिट्ठामि तत्थ ता सुणसु जं जायं // 148 // दीहं नीससिऊणं एवं भणियं तु कणगमालाए / अञ्जवि किमित्थ बहुणा विगप्पसं कप्पजालेणं // 149 / / सुचिरं विचिंतिऊणवि तेण जणेणं न संगमो ताव / पुनरहियाए मज्झं हयविहिणो विलसियवसेण // 150 // | अच्छउ संगमसोक्खं दंसणासावि दुल्लहा जाया / जाए तस्स विओगे फुटुंतं धारियं हिययं // 151 / / ता का अअवि आसा जेण क तुम हियय! फुसि न झति / खणमित्तदिट्ठवल्लहविओयवज्जेण दलियंपि॥१५२॥ न य पिउवयणं साउं इच्छियजणविरहकारयं हियय!। वअघडियव मन्ने जनवि सयसिक्करं जासि // 153 // अम्माए तायस्सवि वल्लहिया हं ति इय मरट्टो जो। हिययम्मि आसि | मनं सोवि हु इहि पलीणोत्ति // 154 // सुहसज्ज्ञ चिय एवं कर्ज मा पुत्ति ! कुण विसायति / एवंविषयणेहि पँयारिया जेण | अंबाए // 155 / / जस्सुवरि तुज्या इच्छा दायव्वा तस्स तं मए पुत्ति! | इयनियवयणं ताएण संपर्य अभहा विहियं // 156 // विना| यमहसरूवो ओ अन्नहा जइ करेइ ताओवि / मह वंछियसंपत्तीए संभवो ता कहं होउ // 157 / / एवं वियाणिऊणवि हियय! तुम कीस मुंचसि न आसं / तज्जणसंगमविसयं जेणजवि जीवियं धरसि // 158 // अहवा न कोवि दोसो पहुपरवसचिट्ठियस्स तायस्स। अणहुन्तं अभवत् असंजायमानम् / 2 पश्यामि / 3 विज्ञातस्वरूपार्था / 4 तूष्णीका / 5 भ्रंशमानम् / 6 मरट्टो गर्क। * प्रतारिता=वञ्चिता। त्वम् / 9 प्रभुपरवशस्थितस्य / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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