________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। // 25 // ग्गसमन्नियं च अप्पाणं / जीवियमवि सकयत्थं मर्मता पुलइयसरीरा॥१८॥ अवरुंडइ सहिनिवहं उच्चं संलवइ हसइ अनिमित्तं / पार्य- का तइओ | गुडेण महिं विलिहइ केसे य संजमइ / / 182 / / एमाई सैवियारं चेटुंता कीलिऊण खणमेगं। मयणसरविहुरियंगी इहागया एरिसा जाया परिच्छेओ। | // 183 // एवं च हंसियाए भणियम्मि पुणोवि सा मए पुट्ठा / को सो पुरिसो हंसिणि !, कहियं सर्वपि मह तीए // 184 // सोहणठाणे रामो पुत्तीए, चिंतिउं गया पासे / तीऐ दिट्ठा य मए सयणीयगया कणगमाला // 185 // ऑपंडुरमुहकमला सुदीहसासेहिं सोसि-IN | यसरीरा / कहकहवि हु नियजीयं महया किच्छेण धारती // 186 // पियविरहजलणजालावलीहिं संतावियाए वरईए / हारो चंदणपंको मुंम्मुरसरिसोव्व पडिहाइ // 187 // चीयव्व मुणालाई नलिणीदलाईपि जालतुल्लाई / अंगाररासिसरिसा पैडिहासइ हंसतूलीवि // 188 // *पुट्ठा न देइ वयणं आलवइ न सहिजणं सिणिद्धपि / झाणोवगया वरजोगिणिच जाया विगयचेट्ठा // 189|| पियविरहपिसाएणं गहि| या गयचेयणावि हु सहीहिं / आसासिजइ वरई सुंदर! तुह नाममंतेहिं / / 190 // पियविरहपीडियं तं तुंडिगयनियजीवियं मुंणेऊणं / तदुक्खदुक्खिया है समागया तुम्ह पासम्मि // 191 // एवं कुसुमसराओ अइगरुयं आगयं महं वसणं / जं तीए दुक्खियाए अहंपि अइदुक्खियाचेव // 192 / / ता सुयणु कणगमाला जा सा नीसाससोसियसरीरा। आसासिजउ वरई जाव न सासा सैमप्पंति // 19 // | लहु कुणसु किंचुवायं जाव न नीसरह जीवियं तीए / गयजीवियाए पच्छा किं काही लावयरसेण // 194 // तव्वयणं सोऊणं तइया * अह रौयउत्त! मे भणियं / एयपि न जाणामो का एसा कणगमालत्ति // 195 // ता पुच्छ भाणुवेगं पत्थुयवत्थुम्मि गहियपरमत्थं। // 25 // अवरुडइपरिरभते-आलिङ्गति / 2 संयमयति / 3 सविकारम् / 4 आपाण्डुरम् ईषत्पाण्डु। 5 वराक्याः / 6 मुर्मुरः-तुषाग्निः / 7 ज्वालातुल्यानि / | 8 प्रतिभासते। त्रुटि संशयः। 1. ज्ञात्वा। 11 आश्वास्यताम् / 12 समाप्यन्ते। 13 राजपुत्र !| * चिता इव For Private and Personal Use Only