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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * कोऊहलेण अवरावरेसु ठाणेसु / हिंडामि तत्थ भवणे लीलाए समं वयंसेहिं // 80 // ताव मह माउलसुओ सहरिसमागम्म साइयं * | दाउं / वज्जरइ भाणुवेगो पभूयकालाओ दिट्ठो सि // 8 // युग्मम् / / कुसलं च पवणगइणो पिउभगिणीए य बउलवइयाए / तत्तो | य मए भणिय कुसलं सब्वेसि, अन्नं च // 82 // एत्थेव आगयाइ इमाई चिट्ठति भद्द ! जिणभवणे / अम्मापिऊण मूलं समागओ तेणे | सहिओ हं॥८३॥ सायरमवगूढो सो तेहिं पउत्तिं च पुच्छिओ भणइ / कुसलं मह जणगाणं नागमणं कारणावेक्खं // 84 // अह सो मए पभणिओ वित्तप्पाया इमा हु जिणजत्ता / संपइ पुण अम्हाणं आगच्छसु पाहुणो ताव // 85 // ____ तो भणइ भाणुवेगो एवं एयंति किंतु निसुणेसु / मह चित्तभाणुषिउणा लहुमागच्छेज इति भणियं // 86 // ता चित्तवेग! संपइ तं चिय नगरम्मि एहि महतणए / उत्कंठिओ पैगाम जं अच्छइ तुम्ह माउलओ // 87 // एवं च तेण भणिओ अम्मापीईहिं अब्भ णुनाओ। भाउसमेओ पत्तो नगरमहं कुंजरावचं // 88 // तहियं च चित्तभाणू मं दटुं सुटु हरिसिओ भणइ / सुंदरमायरियं ते जमागओ अम्ह पाहुणओ // 89 // निययपउत्तिं सव्वं कहिउँ कयभोयणाइवावारो। पत्ताए रयणीए पासुत्तो पवरसँयणीए // 90 // तत्थ य पभायसमए लेवमाणे तंबैचूलनिउरंबे / दिट्ठो अदिदुपुत्रो एसो सुमिणो मए तइया // 91 / / किल धवलफुल्लमालं मणोहरं दटु तम्ग* हट्ठाए / चलिओ हं न य सकेमि गेण्हिउं तं जया कहवि // 92 / / केणवि मित्तण तओ समप्पिया आयरेण मे गहिया। ओलंबिस्सं | गलए किल नियए ताव सा झत्ति // 93 / / पडिया मह हत्थाओ कत्थवि य गयत्ति नेय जाणामि / ताहे महंतदुक्ख तविरहे मज्झ 1 मातुलसुतेन / 2 वृत्तप्राया=पूर्णप्राया। 3 मदीये। 4 प्रकामम् / 5 अभ्यनुज्ञातः आदिष्टः / 6 प्राघूर्णकः अतिथिः / 7 प्रसुप्तः। 8 शयमे। 9 ल. IPIL पतिशब्दायमाने। 10 ताम्रचूडनिकुरम्बे-कुक्कुटसमूहे। 11 स्वमः / 12 अवलम्बिध्ये निवेशयिष्यामि। For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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