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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ** परिच्छेओ। *** ** सुरसुंदरी- संजायं // 94 // तिसृभिः कुलकम् / सुकावि मए एसा पुणोवि अमिलाणकुसुमिया विहिया। इय भणिऊणं केणवि कंठे विणिवेसिया चरिअं। मझ // 95 // ताव पडुपडहझल्लरिकाहलभभामउंदसद्दालं / सोउं तूरस्स खं झत्ति पणट्ठा महं निद्दा // 96 // तो हरिसविसायड्ढं दटुं सुमिण विचिंतियं हियए / किं नाम मज्झ स्यइ अदिट्ठपुव्वं इमं सुमिणं 1 // 97 // का हंदि ! इमा माला विजा वा संपया व मह // 22 // | होजा / दिना केणवि नट्ठा पुणरवि लद्धा, न याणामि // 98 // एवं अणिच्छियत्थो सुविणसरूवस्स उढिओ अहयं / काउं पभाय किच्च अह सहिओ भाणुवेगेण // 19 // आरूढो पासाए उवरिमभूमीए चित्तसालाए / मणिरयणकोट्टिमम्मी उवविट्ठो मैत्तवारणए // 100 // युग्मम् ।।अह तं पभायदि8 सिटुं सुविणं तु भाणुवेगस्स / निच्छइउं नो सक्कइ सोवि हु सुविणस्स सेन्भावं // 10 // | चिंतिचा मृविणफलं विगप्पसंकप्पखित्तनियचित्ता / जा चिट्ठामो अम्हे खणंतरं तत्थ ठाणम्मि // 102 // ताव य वरनेवत्थो महग्ध| आभरणभूसियसरीरो / सव्वोवि नयरलोओ गंतुं कत्थवि पयट्टोत्ति // 103 // युग्मम् // तं दटुं मए भणिय सबालवुड्डो इमो जणो | कत्थ / कयउँवसोहो वह साहसु भो भाणुवेगम्ह ? // 104 // भणियं च तेण निसुणसु अजं जं मेयणतेरसी भद्द!। मयरंदुजा| गठियस्स तेण जताए मयणस्स // 105 // एसो नरनारिगणो पूयत्थं तस्स बच्चइ पमोया। अम्हेवि हु गच्छामो पेच्छामो | कुसुमसरजत्तं // 106 / / युग्मम् / / / ततो य मए भणिय एवं होउत्ति दोवि संचलिया। कयसिंगारा पेयओ पत्ता य कमेण उजाणं // 107 // कीलतकामिणीयण 1 अनिश्चितार्थः / 2 मत्तवारणमत्तालम्बः / 3 शिष्टम् उच्चम् / 4 निश्चेतुम् / 5 सद्भाव परमार्थम् / 6 महाघ-बहुमूल्यकम् / 7 प्रवृत्तः / 8 उपशोभाafell विभूषा / 9 मदनत्रयोदशी। 10 मजति / 11 प्रमोदात् / 12 कुसुमशरः कामः / 13 पयओ-पदतः पादाभ्याम् / ** *** * // 22 // *** For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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