________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। तडओ परिच्छेओ। वायतमध्यमारुयमददोलंतधयवडग्गेहिं / सन्नव करेमाणं आगमणत्थं जणोहस्स // 67 // दुंदुहिमउंदमहलतिलिमापमुहेण तूरसद्देण। * हकारेंतंव जण जत्तासमए जिणिंदस्स // 68 // तत्तो कमेण पत्ता दिसि दिसि नचंतअच्छरानियरं / मणहरगेयझुणीए आणदियभविय- संदोहं // 69 // नाणाविहवत्थेहिं कयउल्लोयं मणोहरायारं / विछिंचीए लंबियनिम्मलवरहारओचूलं // 70 // विरइयघणफुल्लहरं विचितलबंततारियाइन / पवरपडिमंडवेणं उच्छाइयअंगणाभोयं // 71 // नीसलतंड्डियचंदायएहिं मंडियचउकियादेसं / फुल्लमयपवरतो रणसोहियमझ जिणिदगिहं // 72 // चतसृभिः कलापकम् // तस्स य दुवारदेसे निम्मलजलपूरियाए वावीए / काऊण पार्यसोयं नि* ययवयंसेहिं परियरिओ // 73 // जिणभवणदुवारडियउच्चल्लियफुल्लमालियोहस्स / पुप्फाई गेण्हंतो अंतो विहिणा पविट्ठों // 7 // // युग्मम् / / पूइय जिणिदबिंबे काउं'चीइवंदणं जहाविहिणा / बाहिं नीहरिओ हं उवविट्ठो खयरमज्झम्मि // 75 / / वत्ते जिणमजणए इओ तओ तत्थ संचरंतो हं / अवरोप्परदंसियकोउगेहिं सहिओ वयंसेहिं / / 76 // कत्थइ विलासिणिजणं पेच्छंतो नचमाणयं विविहं / कत्थइ कविवरनिवहं जिणचरियं अहिणवेमाणं // 77 // वीणारवसंवलियं कथवि गीयज्युणिं निसीमेंतो। विरइयविविहायारं कत्थवि | य बलिं पेलोएंतो // 78 // कत्थइ तरुणनरेहिं दिजंतं रासयं सुणेमाणो / सुरसुंदरीहिं कत्थइ गिअंतं धवलसंघायं // 79 // एवं च जाव 1 बात् (चलत् ) मृदुकमारुतमन्दान्दोल्यमानध्वजपटाप्रैः / 2 संज्ञाम् / 3 मुकुन्दो वाद्यविशेषः। 4 झुणी=ध्वनिः / 5 उल्लोचः चन्द्रातपः “चंदरबो" इति भाषायाम् / 6 विच्छित्तिः प्रान्तभागः / 7 भवचूल: ध्वजस्याधोमुखः कूर्चकोऽवचूलः, उच्चूलं ध्वजस्योर्थस्थितः कूर्चक: उस्चूलः / 8 निस्तलंन्तलम् / एतद्विर्य जग ततम् विस्तृतम् / 10 पादशौचम् / 11 उच्चलितः-समीपागतः। 12 फुल्लमालिया-पुष्पषिकेत्री। 13 चैत्यवन्दनम् / 14 बहिः / 15 निशमयन् शृण्वन् / | 16 प्रलोकमानः / 17 गीयमानम् / // 21 // For Private and Personal Use Only