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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरीचरि। ** | बीओ परिच्छेओ। // 13 // * ** उद्धेसियरोमकूवो सीयलअनिलेण संकुइयगत्तो। एसो दरिद्दपुरिसो कहकहवि समारइ कुडीरं // 101 // तिसृभिः कुलकम् // | ओलंबियकन्नजुयं हम्मत गरुयवारिधाराहि / ओलुंग्गभग्गदेउलकोणगयं रासभं निर्यसु // 102 // तह पेच्छ इमं सुंदरि! सुणहं चु- |ल्लीए सुन्नगेहम्मि / सीएण कुणुकुर्णतं खरखरखडं खणेमाणं // 103 // तह पेच्छ र्जरबइल्ला जलहरधारावलीहि हम्मंता / ईरियासमि* उव्व सुणी वञ्चति महिं पलोएंता॥१०४॥ सेवालियभूमितले फिल्लुसमाणा य थामथामम्मि / हत्थगयलद्विखंडा भिक्खं परियडइ | जररोरों // 105 // एवं च जाव साहइ देवीए ताव कंचुई झत्ति / पायवडणुडिओ अह वसुदत्तो भणिउमाढत्तो॥१०६॥ देवेण जो | उ पुश्विं पट्ठविओ आसि चंपनयरीए / सिरिकित्तिवम्मरको दूओ दामोदरो नाम // 107 // सो देवपायदसणसुहकंखी आगओ दुवा. | रम्मि / चिट्ठइ एवं च ठिए देवो पमाणति तं सोचा / / 108 // दिट्ठीए आपुच्छिय देवि सहसत्ति उढिओ राया / अत्थाणमंडवस्स उ| आसनो जाव संपत्तो॥१०९॥ ताव य विज्जुचमुक्कारणंतरं चंडचडडसंसहो / आसनो संजाओ "मेसियनरनारिसंघाओ॥११॥ *तिसृभिः कुलकम् / / तयणतरं च महाहारवसंमीसं समुट्ठियं सदं / देवीगिहम्मि सोउं सहसा वलिओ महीनाहो // 11 // वजह देविधावी रुयमाणी घग्घरेण सद्देण / नरवर! मुट्ठा मुट्ठा देवी विज्जूए दद्धत्ति // 112 // दहण भूमिपडियं देवीदेहं जिएंण परिचत्तं / हा! हा! हति भणंतो राया मुच्छावसं पत्तो।।११।। दट्ठण भूमिपडियं नरनाहं मुच्छियं विगयचेहूँ / भूरितरो संजातो परियणअकंदसद्दोवि // 114 // पासट्ठियपुरिसेहिं सीयलपवणाइयम्मि विहियम्मि। रायावि विगयमुच्छो विलविउमेवं समाढतो॥ 1 उद्घसिय–पुलकितम् / 2 समारचयति / 3 ओलुग्गं छायारहितम् / 4 पश्य / 5 श्वानम् / 6 जरबलीवान् / 7 पतन्तः / 8 स्थाने स्थाने। 9 रोररहः / 10 कञ्चुकी प्रतिहारः / 11 विद्युच्चमत्कारानन्तरम् / 12 मेषितः भापितः। 13 मुय / 14 जीवेन परित्यक्तम् / *** * *4899-* // 13 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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