________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊणं कुणइ नियपोरिसं पयर्ड // 29 // जह जह ते भिल्लनरा देंति पहारे दढं दयाहीणा / धणदेवो उण तह तह अब्भसियकलो पर्वचेइ // 30 // अविय फैरएण केवि हु इओ तओ केवि कायकरणेणं / केवि हु दूराउच्चिय एंते खग्गाभिघाएण // 31 // कहकहवि हु मिल्लेहिं गहिओ फरएहिं उट्ठहेऊण / भणियं च तेहिं रे! रे! एसो सस्थाहिवो वणिओ // 32 // ता बंधिऊण एवं अक्खयदेहं तु पल्लिनाहस्स / अप्पेमो जेणेसो देह वणिओ धणं बहुयं // 33 // ततो य तेहिं गंतुं पल्लीवइणो समप्पिओ एसो / एत्थंतरम्मि दिट्ठो धणदेवो देवसम्मेण // 34 // तत्तो य तेण भणिओ सदुक्खमेवं तु पल्लिनाहस्स / हा! हा ! सामिय! एसो महाणुभावो स धणदेवो // 35 / / जेण तया तुह तणओ जोगियगहिओवि मोइओ आसि / दाउं सुवनलक्खं निकारणवच्छलेणं तु // 36 // जयसेणकुमरजीवि| यदाया धणधम्मसेद्विपुसो सो / परमुवयारी सामिय ! कहणु अहन्नेहिं विहिउत्ति? // 37 // इय देवसम्ममणियं सोउं सभंतलोयणो सहसा / अह भणइ सुप्पइटो मुंचद्द मुंचह महाभागं // 38 / / पासट्ठियपुरिसेहिं तक्खणमुच्छोडिया य से बंधा / पल्लीवाणा ताहे अवKell गूढो सायरं एसो // 39 / / ततो विहियपणामो तकालमुचियम्मि आसणे दिने / पासट्ठियपुरिसेहिं, उवविट्ठो तत्थ धणदेवो // 40 // तत्तो य दीहदीहं नीससिय विसायगम्भिणं एवं / लजावणमियवयणो पल्लिवई भणिउमाढत्तो // 41 // परसुवगारित्ति तुम उवेच्च किल होसि अम्ह ददृयो / नवरं गिहागयस्सवि सागयमेवंविहं विहियं ! // 42 // जायइ अवगारफलो विहिओ पावाणं अहव उवयारो। | सप्पस्स जहा दिन दुईपि विसरणमुवेइ // 43 // पावो अहं कयग्यो सुयजीवियदायगस्स जेणजे / गिहमागयस्स एवं अहम्मकम्म 1 फलकेन / 2 सार्थाधिपः / 3 अक्षतदेहम् / 4 अर्पयामः / 5 अधन्यैः 'अस्माभिः' इति शेषः / 6 संभ्रान्तलोचनः संभ्रमयुक्तनयनः / 7 गर्भितम् / 8 कृतघ्नः / ( येनाद्य / 10 धर्मादनपेतं धर्म्य तद्विरुद्धमधयं तच तत् कर्म केत्यर्थः / For Private and Personal Use Only