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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुणो रन्ना भणिय-किं सव्वजणो इच्छइ सकंदणपहरणं च बोहेसु / पहिएहिं किं व घेप्पइ साहिजउ देवि ! एयंपि? // 49 // | सुरसुंदरीइ भणियं पवड्डमाणक्खरं इमं देव ! / 'सं-ब-ल'मुत्तरमेत्थं रना भणिय पिए ! भणसु // 50 // आमंतिजउ लच्छी कत्थ वसं| ताण नासए बुद्धी / कत्थ न नासइ सुहडो पिययम! साहेसु एयं मे // 51 // भणिय रन्ना सुंदरि ! पडिलोमं वड्वमाणवन्नामिण / 'सं-गा-में' इति, तत्तो, रना भणिय पिए ! भणसु // 52 // किं धरइ पुन्नचंदो, किंवा इच्छति पामरा खित्ते / आमंतसु अंतगुरुं किंवा | सोक्ख पुणो सोक्खं ? // 53 // दट्टण किं विसइ कुसुमवणं जणियजणमणाणंदं / कह णु रमिजइ पढमं परमहिला जारपुरिसेहिं ? // 54 // सुरसुंदरीइ चिंतिय भणिय एयपि जाणिय देव ! / दैवत्थं दुसमत्थं उत्तरमेत्थं 'स-सं-कं ते // 56 // इय पण्होत्तरभिंदणकरणिकरसाणवग्गहिययाण / देवीनिवाण तहिय समागओ कसिणगुरुसप्पो // 56 // अह पुव्यवेरिएणवि | सप्पेण तेण दोण्णिवि जणाई / दुखूण पट्ठिदेसे दवाइं गरुयरोसेण // 57 // सप्पो सप्पोत्ति पेयपिरीइ देवीइ कलयलं सोचा / अह खग्गवग्गहत्था समागया अंगरक्खा से // 58 / / भुयगोवि हु भयसंभमवेविरदेहो कयावराहोत्ति / नासंतो हणिऊणं खंडोखंडीकओ तेहिं // 59 / / तयणतरमुच्छलिओ महंतकोलाहलो परियणस्स / समयं चिय निवदेवीदेहट्ठियविसवियारेण // 6 // तओ। वौहिप्पंति पहाणा गारुडिया गारुडेसु पत्तट्ठा / कीरंति मंतजावा आणाविअंति मूलीओ // 61 / / अभिमंतियतोएणं दिजत श-सुखम् , शाम्ब-वज्रम् , शम्बल पाथेयम् ; इत्येव वर्धमानैकैकाक्षरैरुत्तराणीति / 2 मे हे लक्ष्मि ! ग्रामे, संग्रामे, इत्यर्थः / 3 पामरो कुटुम्बी / | 4 अन्ते गुरुयस्य तम् , सगणमित्यर्थः / 5 विसट्टइ-विकसति / 6 द्विर्व्यस्तम् / 7 द्विः समस्तम् / 8 सस (शशम् हरिणम् ) कं (जलम् ); स! (सगण! | इत्यर्थः) से (मागुखम् ) के (के मुख); ससंक (शशाङ्कम् ); ससक (सशङ्कम् ) / 9 प्रजल्पिव्याः / 10 खण्डमण्डीकृतः / 11 वाहिप्पति ग्याहियन्ते आहुयन्ते इत्यर्थः / 12 आनाय्यन्ते / 13 दिज्जति+अच्छि दिज्जतच्छि / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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