________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie ला सुरसुंदरी चरि // 133 // ** * हिमवंतपव्वए अह पत्तो मज्झण्हसमउत्ति // 37 // युग्मम् / / भोयणवेला वट्टइ विन्नत्तो तत्थ सूवयारेण / पूइयजिणिंदबिंबो विहिणा * सोलहमो चीवंदणं काउं // 38 // नहयरनियरपरिगओ भोत्तूणमणग्यपवरमाहारं / सुरसुंदरीए सहिओ केयलीहरयं अह पविट्ठो // 39 // सयणी- परिच्छेओ यम्मि पसुत्तो सुरयसुहं सेविऊण खणमेगं / पडिबुद्धाए सुरसुंदरीइ अह नरवई भणिओ // 40 // पिययम ! ताव खणतरमच्छामो | | विबुहजणविणोएण / ता बढसु किंचि पाहोत्तरंति, अह नरवई भणइ // 41 // को जाइ नहे, अहिलसइ किं जणो, कत्थ बच्चइ संसंको? / पइदियह सइ कम्मि व सुरसुंदरि ! सलहिजए पीई ? // 42 // | सुरसुंदरीइ भणियं तंतावलिय कहेसु मणदइय ! / भणइ निवोऽतीतं ते, लद्धं देवीइ 'बी-सं-में // 43 // भणियं रन्ना तुरियं लद्धं पण्हो तर इमं देवि ! / ता भणसु तुमं संपइ देवीए ताहि संलत्तं // 44 // को तीसाए पढमो कमि व राया विणस्सइ विणट्ठो / किं सक्कय | वोलीणं कस्स व दइओ तुहं नाह ! ? // 45|| आमंतिजउ लच्छी का वा गेयम्मि मूसरी होइ / तुमए विदिन्नपण्होत्तरस्स तंतावली का वा? // 46 // भणियं रना अवो! देवी पण्होत्तरेसु अइकुसला / जं तावलियावि हु विहिया पण्होत्तरं झत्ति ? // 47 // वत्थं दुहाणुलोमेण तह य पडिलोमओ भवे वत्थं / अणुलोमेण समत्थं चउह कयं देवि ती-तं-ते // 48 // 1 कदलीगृहम् / 2 प्रश्नोत्तरमिति / 3 प्रश्नचतुष्टयस्याप्यस्योत्तरगाथास्थवी सं-भ' पदघटकैर्व्यस्तैः पक्षि-सुख-नक्षत्रवाचिभिरक्षरः, विश्वासवाञ्चिभिश्च समस्तैस्तैरानुलोम्येन यथाक्रममुत्तर विज्ञेयम् / 4 नभसि / 5 शशाङ्क: चन्द्रः / 6 इलाध्यते / 7 तीसाशब्दे प्रथमः वर्णः क इत्यर्थः / 8 करिमन् सतीति भावः |* 9 सकृत् / 10 मुस्वरा / 11 व्यस्तम् / 12 समस्तम् / 13 पूर्वप्रश्नानां सर्वेषामपि 'ती-तं-ते' इत्यक्षरै विरानुपूा व्यस्तैः, सकृत् पश्चानुपूर्त्या म्यस्तैः, का॥१३३॥ सकृदानुलोम्येन समस्तैव 'ती ("ती' इत्यक्षरम्) तेते (तन्त्रे-राष्ट्रे), तीत (अतीतम्) ते (तय), ते (हे ते ! हे लक्ष्मि ! संती (तन्त्री वीणा), ती-त-ते" इत्येवमुत्तराणीति फलितार्थः / / ** * *** For Private and Personal Use Only