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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirthorg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयसोयविहुरियगो बाहजलं मोत्तुमारद्धो॥१३॥ धणदेवेणं एत्थंतरम्मि सुरसुदरिं पवीयंती। पुट्ठा विलासिणी हंसिया उ संजायसं-* | केण // 14 // मुच्छानिमीलियच्छी का एसा कन्नगा अउव्वत्ति / उजाणनिवडणाई तीइवि से साहिय सव्वं // 15 // संभरियसुमइ वयणो धणदेवो ताहि एवमुल्लवइ / कीस विसनो नरवर ! विलवसि किंवा तुमं देवि // 16 / / किं तं विमुमरियं भे' नेमितियसुम| इणा जमाइ8 / कुसुमायरउज्जाणे जइया किर कन्नगा पडिही // 17 // तत्तो सिग्छ होही समागमो तुम्ह निययपुत्तेण / ता मा प्रह | संपइ मिलिही सो नत्थि संदेहो // 18 // युग्मम् / / जे सो जहत्थवाई सुमई उवलद्धपचओ बहुसो। ता मा कुणह विसायं जाएविह | जाणभंगम्मि // 19 // एवं च समासासइ धणदेवो जाव निउणवयणेहिं / एत्थंतरम्मि सहसा दुंदुहिसद्दो समुच्छलिओ // 20 // गयणाओ ओयरंता देवा दीसंति नयरबाहिम्मि / सुम्मइ जयजयसद्दो सुरकामिणिगीयसंवलिओ // 21 // किं किं इमंति जति जाव अत्थाणसंठिया लोया / ताव य समंतभद्दो समागतो हरिसपडिहत्थो॥२२।। भणइ य कयप्पणामो पुरस्स पुव्वुत्तरे दिसाभाए / कुसुमायरउजाणे जइजणजोग्गम्मि भूमीए // 23 // समणगणसंपरिवुडो समत्थसत्थत्थवित्थरविहिन्नू / परवाइवारवारणनिवारणे केसरिसरिच्छो // 24 // विविहतवोविहिनिरओ विसुद्धचारित्तसंजमुज्जुत्तो। परहियकरणेक्करओ सूरी सुपइट्टनामोत्ति // 25 // अज्जेव समोसरिओ तस्स य निद्दघाइकम्मस्स / संपइ अप्पडिवाई उप्पनं केवलं नाणं // 26 // चतसृभिः कलापकम् / / केवलिमहिमाकरणस्थमित्थ तियसा समागया देव ! / तं सोऊण नरिंदो साणंदो वंदिउँ चलिओ // 27 // देवि ! तुमपि हु पउणा सहिया सुरसुंदरीए होहित्ति / वंदित्ता 1 मे भवताम् / 2 तूरह-त्वरज्वम् / 3 वारः समूहः / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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